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ले ली और तप कर केवलज्ञान पाकर तीर्थंकर पर्याय का उपभोग कर मोक्षलक्ष्मी पायी। ..
___ मेघरथ के दो पुत्र हुए। प्रियमित्रा से नंदिषेण और मनोरमा से मेघसेन। द्रढ़रथ की पत्नी सुमति ने भी रथसेन नामक पुत्र को जन्म दिया।
एक दिन मेघरथ पौषध लेकर बैठा था उसी समय एक कबूतर आकर उसकी गोद में बैठ गया और 'बचाओ! बचाओ!' का करुण नाद करने लगा। राजा ने सस्नेह उसकी पीठ पर हाथ फेरा और कहा – 'कोई भय नहीं है। तूं निर्भय रह।' उसी समय एक बाज आया और बोला - 'राजन्! इस कबूतर को छोड़ दो। यह मेरा भक्ष्य है। मैं इसको खाऊंगा।'
राजा ने उत्तर दिया – 'हे बाज! यह कबूतर मेरी शरण में आया है। मैं इसको नहीं छोड़ सकता। शरणागत की रक्षा करना क्षत्रियों का धर्म है। और तूं इस बेचारे को मारकर कौन सा बुद्धिमानी का काम करेगा? अगर तेरे शरीर पर से एक पंख उखाड़ लिया जाय तो क्या यह बात तुझे अच्छी लगेगी?'
बाज बोला – 'पंख क्या पंख की एक कली भी अगर कोई उखाड़ ले तो मैं सहन नहीं कर सकता।'
राजां बोला – 'हे बाज! अगर तुझे इतनी सी तकलीफ भी सहन नहीं होती है तो यह बेचारा प्राणांत पीड़ा कैसे सह सकेगा? तुझे तो सिर्फ अपनी भूख ही मिटानी है। अतः तूं इसको खाने के बजाय किसी दूसरी चीज से अपना पेंट भर और इस बेचारे के प्राण बचा।'
बाज बोला – 'हे राजा! जैसे यह कबूतर मेरे डर से व्याकुल हो रहा है वैसे ही मैं भी भूख से व्याकुल हो रहा हूं। यह आपकी शरण में आया है। कहिए मैं किसकी शरण में जाऊं? अगर आप यह कबूतर मुझे नहीं सौपेंगे तो मैं भूख से मर जाऊंगा। एक को मारना और दूसरे को बचाना यह आपने कौनसा धर्म अंगीकार किया है? एक पर दया करना और दूसरे पर निर्दय होना यह कौन से धर्मशास्त्र का सिद्धांत है? हे राजा! महेरबानी
:: श्री तीर्थंकर चरित्र : 123 :