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नाम की राजकन्या से उसका ब्याह हुआ। अनंतवीर्य का जीव अच्युतदेव लोक से च्यवकर लक्ष्मीदेवी की कोख से जन्मा। सहस्रायुद्ध उसका नाम रखा गया। जवान होने पर उसका ब्याह कनकश्री से हुआ। उससे शतबल नाम का एक पुत्र पैदा हुआ।
एक बार राजा क्षेमंकर अपने पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, मंत्री और सामंतों के साथ सभा में बैठा हुआ था। उस समय ईशान कल्प के देवता भी चर्चा कर रहे थे। चर्चा में एक देवता ने कहा कि, पृथ्वी पर वज्रायुद्ध के समान कोई सम्यक्त्वी और ज्ञानवानं नहीं है। यह बात 'चित्रचूल' नामक देवता को न रुची। वह बोला-'मैं जाकर उसकी परीक्षा करूंगा।'
वह, मिथ्यात्वी देवता, राजा क्षेमंकर की राजसभा में आया और बोला-'इस जगत में पुण्य, पाप, जीव और परलोक कुछ नहीं है। प्राणी आस्तिकवादी बुद्धि से व्यर्थ ही कष्ट पाते हैं।'
यह सुनकर वज्रायुद्ध बोले – 'हे महानुभाव! आप प्रत्यक्ष प्रमाण से विपरीत ऐसे वचन क्यों बोलते हैं? आपको आपके पूर्व जन्म के सुकृतों का फल स्वरूप जो वैभव मिला है उसका विचार, अपने अवधिज्ञान का उपयोगकर कीजिए तो आपको मालूम होगा कि, आपका कहना युक्तियुक्त नहीं है। गये भव में आप मनुष्य थे और इस भव में देवता हुए हैं। अगर परलोक और जीव न होते तो आप मनुष्य से देव कैसे बन जाते?'
देव बोला – 'तुम्हारा कहना सत्य है। आज तक मैंने कभी इस बात का विचार ही न किया और कुशंका में पड़ा रहा। आज मैं तुम्हारी कृपा से सत्य जानं सका हूं। मैं तुमसे खुश हूं। जो चाहो सो मांगो।'
वज्रायुद्ध बोला – 'मैं आपसे सिर्फ इतना चाहता हूं कि आप हमेशा सम्यक्त्व का पालन करें।' देव बोला – 'यह तो तुमने मेरे ही स्वार्थ की बात कही है। तुम अपने लिये कुछ मांगो।' वज्रायुद्ध बोला – 'मेरे लिये बस इतना ही बहुत है।' वज्रायुद्ध को निःस्वार्थ समझकर देव और भी अधिक खुश हुआ। वह वज्रायुद्ध को दिव्य अलंकार भेट में देकर ईशानदेवलोक में । गया और बोला-'वज्रायुद्ध सचमुच ही सम्यक्त्वी है।'
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 119 :