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________________ की तैयारी कर अन्यथा माता सुतारा को स्वामी श्रीविजय के सुपर्द कर उनसे क्षमा मांग।' अशनिघोष ने तिरस्कार के साथ दूत को कहा – 'तेरे स्वामी को जाकर कहना, अगर जिंदगी चाहते हो तो चुपचाप यहां से लौट जाओ। अगर सुतारा को लेकर जाने की ही हट हो तो मेरी तलवार से यमधाम को जाओ और वहां सुतारा की इंतजारी करो।' दूत ने आकर अशनिघोष का जवाब सुनाया। श्रीविजय ने रणभेरी बजवा दी। अशनिघोष के पुत्र युद्ध के लिए आये। अमिततेज के पुत्रों ने उन सबका संहार कर दिया। यह सुनकर अशनिघोष आया और उसने अमिततेज के पुत्रों का नाश करना शुरू किया। तब श्रीविजय सामने आ गया। उसने अशनिघोष के दो टुकड़े कर दिये। दो टुकड़े के दो अशनिघोष हो गये। श्रीविजय ने दोनों के चार टुकड़े कर डाले तो चार अशनिघोष हो गये। इस तरह जैसे-जैसे अशनिघोष के टुकड़े होते जाते थे वैसे ही वैसे अशनिघोष बढ़ते जाते थे और वे श्रीविजय की फौज का संहार करते जाते थे। इस तरह युद्ध को एक महीना बीत गया। श्रीविजय अशनिघोष की इस माया से व्याकुल हो उठा। . अमिततेज जानता था कि अशनिघोष बड़ा ही विद्यावाला है। इसलिए वह. परविद्याछेदिनी महाज्वाला नाम की विद्या साधने के लिए हिमवंत पर्वत पर गया। अपने पराक्रमी पुत्र सहस्ररश्मि को भी साथ लेता गया। वहां एक महीने का उपवास कर वह विद्या साधने लगा। उसका पुत्र जाग्रत रहकर उसकी रक्षा करने लगा। विद्या साधकर अमिततेज ठीक उस समय चमरचंचा नगर में आ पहुंचा। जिस समय श्रीविजय अशनिघोष की माया से व्याकुल हो रहा था। अमिततेज ने आते ही महाज्वाला विद्या का प्रयोग किया। उससे अशनिघोष की सारी सेना भाग गयी। जो रही वह अमिततेज के चरणों में आ पड़ी। अशनीघोष प्राण लेकर भागा। महाज्वाला विद्या उसके पीछे पड़ी। अशनिघोष भरतार्द्ध में सीमंत गिरि पर केवलज्ञान प्राप्त बलदेव मुनि की शरण में आया। अशनिघोष को केवली की सभा में बैठा देख महाज्वाला : श्री तीर्थंकर चरित्र : 105 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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