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________________ वापिस लौट आयी। कारण – 'केवली की सभा में कोई किसी को हानि नहीं पहुंचा सकता है। महाज्वाला के मुख से बलदेव मुनि को केवलज्ञान होने की बात सुनकर अमिततेज, श्रीविजयादि सभी विमान में बैठकर केवली की सभा में गये सुतारा को भी वे अपने साथ लेते गये थे। अशनिघोष भाग गया था तब उन्होंने सुतारा को पीछे से बुला लिया। .. जब केवली देशना दे चुके तब अशनिघोष ने पूछा – 'मेरे मन में कोई पाप नहीं था तो भी सुतारा को हर लाने की इच्छा मेरी क्यों हुई?' केवली ने सत्यभामा और कपिल का पूर्व वृत्तांत सुनाया और कहा- 'पूर्वभव का स्नेह ही इसका मुख्य कारण था।' फिर अमिततेज ने पूछा – 'हे भगवान! मैं भव्य हूं आ अभव्य?' केवली ने उत्तर दिया - 'इससे नवें भव में तुम्हारा जीव पांचवां चक्रवर्ती और सोलहवां तीर्थंकर होगा और श्रीविजय राजा तुम्हारा पहला पुत्र और पहला गणधर होगा।' ... अशनिघोष ने संसार से विरक्त होकर सुतारा, श्रीविजय, अमिततेजादि से क्षमा याचना कर वहीं बलभद्र मुनि के पास दीक्षा ले ली। अमिततेजादि अपनी-अपनी राजधानियों में गये। फिर अनेक वरसों तक धर्मध्यान, प्रभु भक्ति, तीर्थयात्रा और व्रत संयम करते रहे। अंत में दोनों ने दीक्षा ले ली। पांचवा भव : ___ आयु समाप्त कर अमित तेज और श्रीविजय प्राणत नाम के दसवें कल्प में उत्पन्न हुए। वहां वे सुस्थितावर्त्त और नंदितावर्त्त नाम के विमान के स्वामी मणिचूल और दिव्यचूल नाम के देवता हुए। बीसं सागरोपम की आयु उन्होंने सुख से बितायी। छट्ठा भव : इसमें अनंत वीर्य वासुदेव और दमितारि प्रति वासुदेव की कथाएँ भी शामिल हैं।] इस जंबूद्वीप प्राग्विदेह के आभूषण रूप रमणीय विजय में सीता नदी के दक्षिण तट पर धनधान्य पूर्ण एवं समृद्धि शालिनी शुभा नामक एक : श्री शांतिनाथ चरित्र : 106 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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