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________________ आये। और मंत्रबल से हमने अग्नि को बुझा दिया। बनावटी सुतारा जो मंत्रबल से बनी हुई थी - भाग गयी।' ... यह हाल सुनकर श्रीविजय का दुःख क्रोध में बदल गया। उसकी भृकुटि तन गयी। उसके होठ फफड़ने लगे। वह बोला – 'दुष्ट की यह मजाल! चलो मैं इसी समय उसे दंड दूंगा और सुतारा को छुडा लाऊंगा। संभिन्नश्रोत बोला – 'स्वामिन! आप हमारे स्वामी अमिततेज के पास चलिये। उनकी मदद से हम स्वामिनी सुतारा को शीघ्र ही छुड़ाकर ला सकेंगे। अशनिघोष केवल बलवान ही नहीं है, विद्यावान भी है। वह जब बल से हमको न जीत सकेगा तो विद्या से हमें परास्त कर देगा। हमारे पास उसके जितनी विद्या नहीं है।' __ श्री विजय को संभिन्नश्रोत की बात पसंद आयी। वह विद्याधरों के साथ वैताढ्य पर्वत पर गया। अमिततेज ने बड़े आदर से उसका स्वागत किया और इस तरह आने का कारण पूछा। संभिन्नश्रोत ने अमिततेज को सारी बातें कही। सुनकर अमिततेज की आंखें लाल हो गयी। उसके पुत्र क्रुद्ध होकर बोले –'दुष्ट की इतनी हिम्मत कि वह अमिततेज की बहन का हरण कर जाय। पिताजी! हमें आज्ञा दीजिए। हम जाकर दुष्ट को दंड दें और अपनी फूफी को छुड़ा लावें।' अमिततेज ने श्रीविजय को शस्त्रावरणी (ऐसी विद्या जिससे कोई शस्त्र असर न करे) बंधनी (बांधनेवाली) और मोक्षणी (बंधन से छुड़ानेवाली) ऐसी तीन विद्याएँ दी और फिर अपने पुत्र रश्मिवेग, रविवेग आदि को फौज देकर कहा–'पुत्रो! अपने फूफा के साथ युद्ध में जाओ और दुष्ट को दंड करके अपनी फूफी को छुड़ा लाओ। युद्ध में पीठ मत दिखाना। जीतकर लौटना या युद्ध में लड़कर प्राण देना।' श्रीविजय सहस्रावधी सेना लेकर चमरचंचा नगरी पर चढ़ गया। उसने नगर को घेर लिया और अशनिघोष के पास दूत भेजा। दूत ने जाकर अशनिघोष को कहा – 'हे दुष्ट! चोर की तरह तूं हमारी स्वामिनी सुतारा को हर लाया है। क्या यही तेरी वीरता और विद्या है? अगर शक्ति हो तो युद्ध : श्री शांतिनाथ चरित्र : 104 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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