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दिलवाईए।'
राजा ने कपिल को बुलाकर कहा – 'तेरी पत्नी अब संसार-सुख भोगना नहीं चाहती। इसलिए इसको अलहदा रहकर धर्मध्यान करने दे।' कपिल ने कहा – 'राजन्! पति के जीते पत्नी का अलहदा रहना अधर्म है। स्त्री का तो पति की सेवा करना ही धर्मध्यान है। मैं अपनी पत्नी को अलहदा नहीं रख सकता।'
सत्यभामा बोली – 'ये मुझे अलहदा न रहने देंगे तो मैं आत्महत्या करुंगी। इनके साथ तो हरगिज न रहूंगी।
राजा बोला – 'हे कपिल! यह प्राण देने को तैयार है। इससे तूं इसको थोड़े दिन मेरी रानियों के साथ रहने दे। वे पुत्री की तरह इसकी रक्षा करेंगी। जब इसका मन ठिकाने आ जाय तब तूं इसे अपने घर ले जाना।'
इच्छा न होते हुए भी कपिल ने सम्मति दी। सत्यभामा अनेक तरह के तप करती हुई अपना जीवन बिताने लगी।
कौशाबी के राजा बल के श्रीकांता नाम की एक कन्या थी। जवान होने पर उसका स्वयंवर हुआ) श्रीषण के पुत्र इंदुषेण को कन्या ने पसंद किया। दोनों का ब्याह हुआ। श्रीकांता जब ससुराल में आयी तब उसके साथ अनंतमतिका नाम की एक वेश्या भी आयी थी। उस वेश्या के रूप पर इंदुषेण और बिंदुषेण दोनों मुग्ध हो गये। फिर उसको पाने के लिए दोनों ने यह फैसला किया कि, हम द्वंद युद्ध करें। जो जीतेगा वह वेश्या को रखेगा। दोनों लड़ने लगे। माता-पिता ने उन्हें बहुत समझाया। मगर वे न माने। तब श्रीषेण ने जहर मिला हुआ फूल सूंघकर आत्महत्या कर ली। दोनों रानियों ने भी राजा का अनुसरण किया। सत्यभामा ने भी यह सोचकर जहरवाला फूल सूंघ लिया कि अगर जीति रहूंगी तो अब कपिल मुझे अपने घर जरूर ले जायगा।
दोनों भाई युद्ध कर रहे थे उसी समय कोई विद्याधर विमान में बैठकर आया। दोनों को लड़ते देखकर वह नीचे आया और बोला - 'विषयांध मूों! यह तुम्हारी बहन है। उसे जाने बिना कैसे उसे अपनी
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 99 :