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________________ से पानी बरस रहा था। इसलिए लौटते समय कपिल ने अपने कपड़े उतार कर बगल में दबाये और वह नंगा ही घर पर चला आया। अपने दालन में आकर उसने दरवाजा खुलवाया। सत्यभामा ने दरवाजा खोला और कहा - 'ठहरिए मैं सूखे कपड़े ले आती हूं।' कपिल ने कहा – 'मेरे कपड़े सूखे ही है। विद्या के बल से मैंने उन्हें नहीं भीगने दिया।' __मगर घर में आने पर सत्यभामा ने देखा कि कपिल का सिर गीला है और पैर भी गीले हैं। बुद्धिमती कपिला समझ गयी कि पतिदेव नंगे आये । हैं और मुझे झूठ कहा है। पति की झुठाई से सत्यभामा के हृदय में अश्रद्धा उत्पन्न हुई। अचलग्राम में धरणीजट दैवयोग से निर्धन हो गया। उसने सुना था कि कपिल रत्नपुर में धनी हो गया है इसलिए वह धन की आशा से कपिल के पास आया। कपिल ने अपनी पत्नी से कहा – 'मेरे पिता के लिए मुझसे अलग ऊंचा आसन लगाना और उनकी अच्छी तरह से सेवामक्ति करना।' कपिल को भय था कि, कहीं मेरे पिता मुझसे परहेज कर मेरी असलियत जाहिर न कर दें। . सत्यभामा को इस आदेश से संदेह हुआ और कपिल जब भोजन करके चला गया तब उसने धरणीजट को पूछा – 'पूज्यवर! आप सत्य बताइए कि आपका पुत्र शुद्ध कुलवाली कन्या के गर्भ से जन्मा है या नहीं? इनके आचरणों से मुझे शंका होती है। अगर आप झूठ कहेंगे तो आपको ब्रह्महत्या का पाप लगेगा। ___ धरणीजट धर्म भीरु था। वह ब्रह्महत्या के पाप के सोगंद की अवहेलना न कर सका। उसने सच्ची बात बता दी। साथ ही यह भी कह दिया कि मेरे जाने तक तूं कपिल से इस विषय की चर्चा मत करना। जब धरणीजट कपिल से सहायतार्थ काफी धन लेकर अचलग्राम गया तब सत्यभामा राजा श्रीषेण के पास गयी और उसको कहा – 'मेरा पति दासीपुत्र है। अनजान में मैं अब तक इसकी पत्नी होकर रही। अब ब्रह्मचर्यव्रत लेकर अकेली रहना चाहती हूं। कृपाकर मुझे उससे छुट्टी : श्री शांतिनाथ चरित्र : 98 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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