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________________ सुखसामग्री बनाने के लिए लड़ रहे हो?' दोनों लड़ना बंद कर खड़े होकर बोले – 'बताओ यह हमारी बहन किस तरह है?' . विद्याधर बोला – 'मेरा नाम मणिकुंडली है। मेरे पिता का नाम सुकुंडली है। पुष्पकलावती प्रांत में वैताढ्य पर्वत पर आदित्यभ नाम का नगर मेरे पिता की राजधानी है। मैं विमान में बैठकर अमितयश नाम के जिन भगवान को वंदना करने गया था। वहां मैंने भगवान से पूछा – 'मैं किस कर्म से विद्याधर हुआ हूं?' भगवान ने जवाब दिया – 'वीतशोका नाम की नगरी में रत्नध्वज नाम का चक्रवर्ती राजा राज करता था। उसकी कनकश्री और हेममालिनी नाम की दो रानियां थीं। कनकश्री की कनकलता और पद्मलता नाम की दो लड़कियां हुई। हेममालिनी की एक कन्या हुई। उसका नाम पद्मा था। पद्मा एक आर्या के पास धर्मध्यान और तप जप करने लगी। अंत में उसने दीक्षा ले ली। एक बार उसने चतुर्थ तप किया था। और दिशा फिरने गयी थी। रस्ते में उसने दो योद्धाओं को एक वेश्या के लिए लड़ते देखा। उसने सोचा, वह वेश्या भाग्यवती है, कि उसके लिए दो वीर लड़ रहे हैं। मेरे तप का मुझे भी यही फल मिले कि, मेरे लिये दो वीर लड़ें। अंत में नियाणे के साथ मरकर वह देवलोक में जन्म के बाद अब अनंतमतिका नाम की वेश्या हुई। कनकलता और पद्मलता मर, भवमृमण कर, अब इंदुषेण और बिन्दुषेण नाम के राजपुत्र हुए हैं। तुम कनकश्री का जीव हो। अभी इंदुषेण और बिन्दुषेण अनंतमतिका के लिए लड़ रहे हैं। तुम जाकर उन्हें समझाओ।' इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूं।' यह हाल सुनकर उनको बड़ा अफसोस हुआ। दुनिया की इस विचित्रता से उन्हें वैराग्य हुआ और उन्होंने धर्मरुचि नामक आचार्य के पास दीक्षा ले ली। दूसरा भव : श्रीषेण, अभिनंदिता, शिखिनंदिता और सत्यभामा के जीव मरकर जंबूद्वीप के उत्तर क्षेत्र में जुगलिया उत्पन्न हुए। श्रीषेण और अभिनंदिता पुरुष स्त्री हुए और शिखिनंदिता व सत्यभामा स्त्री पुरुष हुए। उनकी आयु : श्री शांतिनाथ चरित्र : 100 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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