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________________ ५ हजार वर्ष तक राज्य किया फिर लोकांतिक देवों के विनती करने पर वरसीदान दे प्रकांचन उद्यान में जाकर, एक हजार राजाओं के साथ माघ सुदि १३ के दिन पुष्प नक्षत्र में दीक्षा ली। इंद्रादि देवों ने दीक्षा कल्याणक मनाया। दूसरे दिन धर्मसिंह राजा के यहां प्रभु ने परमान्न से (खीर से) पारणा किया। ___ भगवान विहार करते हुए दो वर्ष बाद उसी उद्यान में पधारे। उन्होंने दधिपर्ण वृक्ष के नीचे ध्यान धरा। घातिया कर्मों का क्षय होने से पौष सुदि १५ के दिन पुष्प नक्षत्र में उन्हें केवलज्ञान हुआ। इंद्रादि देवों ने ज्ञानकल्याणक मनाया। केवल ज्ञान उत्पन्न होने पर दो वर्ष कम ढाई लाख वर्ष तक उन्होंने नाना देशों में विहार किया और प्राणियों को उपदेश दिया। धर्मनाथजी के संघ में ४३ गणधर, ६४ हजार साधु, ६२ हजार ४ सौ आर्याएँ, ६ सौ चौदह पूर्वधारी, ३ हजार ६ सौ अवधिज्ञानी, ४ हजार ५ सौ मनःपर्यवज्ञानी, ४ हजार ५ सौ केवली, ७ हजार वैक्रिय लब्धिधारी, २ हजार ८ सौ वादी, २ लाख ४ हजार श्रावक और ४ लाख १३ हजार श्राविकाएँ थी। तथा किन्नर यक्ष शासन देव और कंदर्पा नामा शासन देवी थी। ..भगवान, मोक्षकाल समीप जानं सम्मेद शिखर पर आये और १०८ मुनियों के साथ अनशन व्रत ग्रहण कर ज्येष्ठ सुदि ५ के दिन पुष्प नक्षत्र में मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने मोक्ष कल्याणक किया। प्रभु ढाई लाख वर्ष कुमारपन में, ५ लाख वर्ष राज्यकार्य में और ढाई लाख वर्ष साधुपन में रहे। इस तरह उन्होंने १० लाख वर्ष की आयु पूर्ण की। उनका शरीर पैंतालीस धनुष ऊंचा था। . . अनंतनाथजी के निर्वाण जाने के बाद चार सागरोपम बीतने पर धर्मनाथजी मोक्ष में गये। __ इनके तीर्थ में पांचवां वासुदेव पुरुषसिंह, सुदर्शन बलदेव और निशुंभ प्रतिवासुदेव हुए। . धर्मनाथ धर्म ध्वज फरकावें, तीन लोक के जन सुख पावें । इगशत अड सह अनशन ठावे, जिन इस कूढे मोक्ष सिधावें ॥ : श्री तीर्थंकर चरित्र : 95 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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