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________________ १६. श्री शांतिनाथ् चरित्र सुधासोदरवाग्ज्योत्स्ना-निर्मलीकृतदिङ्मुखः । मृगलक्ष्मातमःशान्त्यै, शान्तिनाथजिनोऽस्तु वः ॥ . भावार्थ - जिनकी अमृत के समान वाणी सुनकर लोगों के मुख उसी तरह प्रसन्न हुए हैं, जैसे चांदनी से दिशाएँ प्रसन्न होती हैं - प्रकाशित होती हैं और जिनके हिरन का चिह्न है। वे शांतिनाथ भगवान तुम्हारे पापों को उसी तरह नष्ट करें जैसे चंद्रमा अंधकार का नाश करता है। . पहला भव : जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में रत्नपुर नाम का शहर था। उसमें श्रीषेण नाम का राजा राज्य करता था। उसके अभिनंदिता और शिखिनंदिता नाम की दो रानियां थीं। अभिनंदिता के इंदुषेण और बिंदुषेण नाम के दो पुत्र हुए। वे जब बड़े हुए तब विद्वान, युद्ध व न्यायविशारद हुए। भरतक्षेत्र के मगध देश में अचलग्राम नाम का एक गांव था। उसमें धरणीजट नाम का एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। वह चारों वेदों का जानकार था। उसकी यशोभद्रा नाम की स्त्री थी। उसके गर्भ से क्रमशः नंदिभूति और शिवभूति नाम के दो पुत्र जन्मे। धरणीजट के घर में एक दासी थी। वह सुंदर एवं रूपवान थी। धरणीजट का मन बिगड़ने से उस दासी के गर्भ से एक लड़का जन्मा। उस लड़के का नाम कपिल रखा गया। धरणीजट नंदिभूति और शिवभूति को विद्या पढ़ाता था। कपिल की तरफ कभी ध्यान भी नहीं देता था। परंतु कपिल बुद्धिमान था - मेधावी था, इसलिए वह उसका बाप जो कुछ यशोभद्रा के लड़कों को पढ़ाता था उसे ध्यान पूर्वक सुनकर पाठ कर लेता था। इस तरह कपिल पढ़कर धेरणीजट के समान दिग्गज विद्वान हुआ। : श्री शांतिनाथ चरित्र : 96 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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