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________________ एक दिन लोकांतिक देवों ने आकर दीक्षा लेने की प्रेरणा की। समय जान, वरसीदान दे,.सहसाम्रवन में जाकर, वैशाख वदि १४ के दिन रेवती नक्षत्र में प्रभु ने छ? तप युक्त दीक्षा ली। इंद्रादि देवों ने दीक्षाकल्याणक मनाया। दूसरे दिन राजा विजय के घर परमान्न से (खीर से) पारणा किया। प्रभु विहार करते हुए तीन वर्ष के बाद वापिस उसी वन में पधारें। अशोक वृक्ष के नीचे कार्योत्सर्ग ध्यान में रहे। घाति कर्मों का नाश होने से वैशाख वदि १४ के दिन रेवती नक्षत्र में भगवान को केवलज्ञान हुआ। इंद्रादि देवों ने ज्ञानकल्याणक किया। ___ प्रभु के शासन में - पाताल नामक यक्ष, अंकुशा नाम की शासन देवी, ५० गणधर, ६६ हजार साधु, ६२ हजार साध्वियां, एक हजार चौदह पूर्वधारी, ४ हजार ३ सौ अवधिज्ञानी, ५ हजार मनःपर्ययज्ञानी, ५ हजार केंवली, ८ हजार वैक्रिय लब्धि वाले, ३ हजार दो सौ वादी, २ लाख ६ हजार श्रावक और ४ लाख १४ हजार श्राविकाएँ थी। मोक्षकाल समीप जान प्रभु सम्मेद शिखर पर गये और सात हजार साधुओं के साथ अनशन व्रत धारण कर चैत्र सुदि ५ के दिन पुष्य नक्षत्र में मोक्ष को पधारें। इंद्रादि देवों ने निर्वाण कल्याणक मनाया। . साढे सात लाख वर्ष कुमार वय में, १५ लाख वर्ष राज्य कार्य में और साढ़े सात लाख वर्ष दीक्षा पालने में इस तरह ३० लाख वर्ष की आयु पूर्ण कर प्रभुमोक्ष में गये। उनका शरीर ५० धनुष ऊंचा था। विमलनाथजी का निर्वाण हुआ, उसके पीछे नौ सागरोपम बीतने पर अनंतनाथजी मोक्ष में गये। इनके तीर्थ में चौथा वासुदेव पुरुषोत्तम, चौथा बलदेव सुप्रभ और चौथा प्रतिवासुदेव मधु हुए। अनंत जिनवर विचरते आये, मुनि सप्तसहस संगे आये। शैलेशीकरण चित्त लगाये, स्वयंभू कूट पर शिवपद पाये ॥ : श्री तीर्थंकर चरित्र : 93 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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