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योगिराज श्रीमद् अानन्दघनजी एवं उनका काव्य-४४
प्रात्मा में द्रव्य, गुण एव पर्याय की अपेक्षा ध्रौव्य, उत्पाद एवं व्यय कहलाता है। प्रात्मा में जिस समय में अन्य पर्याय का उत्पाद है, उसी समय में पूर्व पर्याय का व्यय है और उसी समय में प्रात्म-सत्ता का ध्रौव्य है। इस प्रकार प्रात्मा में समय-समय पर अनन्त धर्मों का उत्पाद व्यय होता है और समय-समय पर सत्तारूप ध्रौव्य होता है। जिस समय में नित्य है, उसी समय में अनित्य है। आत्मा का स्याद्वाद के अनुसार जैसा आश्चर्यजनक स्वरूप है वैसा स्वरूप अन्य एकान्त दर्शनों में नहीं बताया गया। प्रात्मा के उत्पाद-व्यय को दृष्टान्त के द्वारा बताया है कि स्वर्ण के अनेक प्रकार के आभूषण बनते हैं। . कुण्डल गलाकर अँगूठी बनाई जाती है तब कुण्डल आकार का व्यय और अंगूठी
आकार का उत्पाद होता है, पर स्वर्ण तो दोनों में विद्यमान ही है। जल-तरंगों में भी पूर्व तरंगाकार का व्यय एवं अन्य तरंगाकार की उत्पत्ति होती है और जलत्व तो दोनों में ध्रौव्य रूप से दिखाई देता है। वैसे ही मिट्टी का घड़ा प्राकार रूप उत्पाद टूटने पर ठीकरों के रूप में व्यय, परन्तु इन दोनों अवस्थानों में मिट्टी का रूप एक ही है। सूर्य की किरणों में भी उत्पाद, व्यय एवं धं वता है, अर्थात् सूर्य की किरणें अनेक दिशाओं में फैलकर अगणित दिखाई देती हैं। किन्तु सूर्य के रूप में वे
एक ही हैं। इसी प्रकार से आत्मा एक द्रव्य तथा मनुष्य, गाय, बैल, · अश्व, तोता, मैना, कबूतर, देव, नारक आदि उसके पर्याय हैं। इन पर्यायों में प्रात्मा सदा के लिए वैसा ही रहता है ।। २ ।।
है, नहीं है और वचन से जो कहा नहीं जा सकता, ऐसा स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, स्याद् अवक्तव्य-इन तीनों भेदों के चार उत्तर भेद (स्याद् अस्ति नास्ति, स्याद् अस्ति वक्तव्य, स्यान्नास्ति प्रवक्तव्य, स्यात् अस्ति नास्ति प्रवक्तव्य) मिलने से सप्तभंगी स्याद्वादनय, द्रव्याथिक
और पर्यायाथिक, निश्चय और व्यवहार नय और नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत नयों के प्रमाणों से परीक्षा करके प्रात्मा के वास्तविक स्वरूप को कोई भाग्यशाली ही अपना पक्षपात त्याग कर जान सकता है। कोई एकान्तवाद रूप पक्ष का त्याग करके अनेकान्तवाद रूप निष्पक्षता स्वीकार करके यदि आत्मा का स्वरूप देखे तो उसे प्रात्मज्ञान होता है, परन्तु विरले ही इस प्रकार सप्तभंगी, सात नय और चार प्रमाणों से प्रात्मा का स्वरूप पहचान सकते हैं। प्रात्मा में एकान्त धर्म स्वीकार करने वाले मत के कदाग्रही मनुष्य, विवादो मनुष्य इसका वास्तविक स्वरूप कैसे जान सकते हैं ? ॥३॥