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योगिराज श्रीमद् प्रानन्दघनजी एवं उनका काव्य-३०
_ 'प्रानन्दघन बोहत्तरी' के नाम से श्रीमद् प्रानन्दघनजी के पद विख्यात हैं, जिससे ज्ञात होता है कि आनन्दघनजी ने ७२ पदों की रचना की होगी, परन्तु श्रीमद् अानन्दघनजी ने बाईस स्तवनों की रचना की, फिर भी उसे 'मानन्दघन चौबीसी' के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार 'प्रानन्दघन बोहत्तरी' नाम भी बाद में दिया हुआ हो सकता है। हस्तलिखित प्रतियों में भिन्न-भिन्न पद-संख्या है, परन्तु उनमें अन्य कवियों के पद तथा किसी अज्ञात कवि द्वारा प्रानन्दघन जी के नाम पर लगाये गये पद भी अनेक हैं, जैसे 'अब हम अमर भये न मरेंगे' पद प्रागरा निवासी श्री द्यानतरायजी का माना जाता है तथा 'अवधू वैरांग बेटा ज़ाया', 'अवधू सो जोगी गुरु मेरा', और 'तज मन कुमता कुटिल को संग' पद क्रमशः बनारसीदास, कबीर और सूरदास के हैं। इसी प्रकार जैन कवि भूधरदास, आनन्दघन, पंकज, देवेन्द्र एवं सुखानन्द नामक कवियों की रचनाएँ आनन्दघन के नाम से लग गई प्रतीत होती हैं। 'आनन्दघन ग्रन्थावली' के पद संख्या १०१ का रचयिता श्रीमद् अानन्दघनजी को माना गया है, जबकि उक्त पद 'कबीर' का है जो 'कबीर ग्रन्थावली' में पृष्ठ संख्या १६६ पर ३२१ वाँ पद है। 'पानन्दघन" के नाम से कुल १२१ पद मिलते हैं, जिनमें से कौन से पद अन्य कवियों द्वारा रचित हैं, यह निर्णय नहीं हो पाया है। प्रानन्दघन ग्रन्थावली में श्री उमरावचन्द जरगड एवं श्री मेहताबचन्द खारेड ने संशोधन करके इसके ७३ पद अलग निकाले हैं जो श्रीमद् आनन्दघनजी के बताये हैं।