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जीवन-झांकी-२७
था। आनन्दघनजी ऐसे हो किसी यति के शिष्य होंगे। उन्होंने उस समय के रहस्यवादी संतों का सहवास किया था और मस्त जीवन जिया था।
उनका विहार-क्षेत्र :
जैन साधु विभिन्न स्थानों पर वर्षावास करते हैं और तत्पश्चात् वे निरन्तर विहार (भ्रमण) करते रहते हैं। श्रीमद् आनन्दघनजी ने किन-किन प्रदेशों में विहार किया होगा? कहाँ-कहाँ वर्षावास किये होंगे? इसका विवरण उपलब्ध नहीं है। उनके स्तवनों, पदों आदि में भी स्थलों का कोई उल्लेख नहीं है। अतः उनके विहार-क्षेत्र के सम्बन्ध में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलते।
माना जाता है कि उनका स्वर्गवास मेड़ता में हुआ था। अतः गुजरात, राजस्थान और ब्रज उनका विहार-क्षेत्र प्रतीत होता है। श्री अगरचन्दजी नाहटा का मानना है कि आनन्दघनजी का विहार अधिक लम्बा नहीं है। जीवन के अन्तिम दिनों में वे निश्चित रूप से मेड़ता में थे। श्री अगरचन्दजी नाहटा ने तो मेड़ता (राजस्थान) को ही उनकी जन्म-भूमि माना है, परन्तु इसका . कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है।