________________
जीवन-झांकी-१७
रोका था। वह स्त्री उनके पास ज्ञान उपार्जन करने के लिए आया करती थी। यह बात मारवाड़ के एक गाँव की है। वह स्त्री अधिक समय श्रीमद् आनन्दघनजी के पास रहकर अध्यात्म-ज्ञान का अनुभव प्राप्त करती थी और आत्मा को उच्च दशा में ले जाने का प्रयत्न करती थी। कुछ विघ्न-सन्तोषी व्यक्तियों ने अफवाह फैला दी कि श्रीमद् का सेठ की पत्नी के साथ गलत सम्बन्ध है। श्रीमद् तो उच्च कोटि के पुरुष थे, अतः उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। कुछ व्यक्ति उन्हें पाखण्डी, धूर्त प्रादि कहकर उनकी छवि को धूमिल करना चाहते थे, तो भी आनन्दघनजी उनका बुरा नहीं मानते थे। वे तो आत्म-गुणों को प्रात्म-साक्षी से सेवन करके मोक्ष प्राप्त करना चाहते थे।
राजा की पुत्रियों को प्रतिबोध : - कहते हैं कि प्रानन्दघनजी एक बार मारवाड़ के मेड़ता गाँव में अथवा अन्य किसी गाँव में गये। वहाँ के राजा की दो पुत्रियाँ कुछ समय पूर्व ही विधवा हो गई थीं। अतः वे प्रतिदिन रुदन किया करती थीं। राजा ने उनका शोक दूर करके उन्हें सान्त्वना देने के अनेक उपाय किये, परन्तु उन पुत्रियों का शोक दूर नहीं हुआ। राजा ने आनन्दघनजी को उनका शोक दूर करने के लिए निवेदन किया। श्रीमद् ने संसार की असारता समझा कर उन्हें प्रात्म-स्वरूप समझाया, जिससे उनका शोक टल गया और वे धर्म की ओर उन्मुख हुईं। तत्पश्चात् वे प्रानन्दघनजी के पास अधिक आने लगी और उनकी सेवा करने लगीं। दुर्जन मनुष्यों ने अफवाह फैलाई कि श्रीमद् का उन राजपुत्रियों के साथ गलत सम्बन्ध है। बात गाँव-गाँव फैल गई। अन्त में राजा ने भी बात सुनी। इस बात का गुप्त रूप से पता लगाने के लिए राजा तथा गाँव के अन्य प्रागेवान वहाँ गये। उस समय आनन्दघनजी ने उन्हें अद्भुत उपदेश दिया और अग्नि में दोनों हाथ रखकर चमत्कार बताया जिससे लोगों को शंका दूर हो गई और उनके चारित्र के प्रति उन्हें दृढ़ विश्वास हो गया। राजा ने उनसे क्षमा-याचना की। इस किंवदन्ती में कितनी सच्चाई है, यह तो पाठकगण स्वयं निर्णय करें।
दुर्जनों की चाल :
- प्रानन्दघनजी अध्यात्म-ज्ञान का उपदेश देते थे। अतः एकान्त क्रिया के अनुयायी साधुओं ने ऐसा उपदेश दिया कि श्रीमद् निश्चयवादी