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* संसार में अध्यात्म-ज्ञान रूपी धर्म-मूल के बिना कोई दर्शन रूपी वृक्ष स्थिर नहीं रह सकता । अध्यात्म ज्ञान से मन, वाणी एवं देह के योग की शुद्धि होती है।
★ अध्यात्म-ज्ञान चिन्तामणि रत्न तुल्य है।
★ अध्यात्म-ज्ञान से तो दुराचार एवं भ्रष्ट विचारों का नाश होता है।
★ द्रव्यानुयोग के ज्ञान के बिना अध्यात्म-ज्ञान में प्रविष्ट नहीं हुआ जा सकता।
★ यदि अध्यात्म-ज्ञान का प्रचार किया जाये तो मनुष्य अपनी आत्मा की ओर उन्मुख होते हैं और मनुष्यों के प्राचारों में सुधार होता है । .. ★ कोई भी व्यक्ति अध्यात्म-ज्ञान के बिना मोक्ष की ओर प्रयाण नहीं कर सकता। जिस प्रकार जल के बिना वृक्ष के समस्त अवयवों का पोषण नहीं होता, उसी प्रकार से अध्यात्म-ज्ञान के बिना आत्मा के समस्त गुणों का पोषण नहीं होता।
इस प्रकार के विचारों के धनी महान् अध्यात्म योगिराज श्री आनन्दघनजी के चरणारविन्द में कोटि-कोटि वन्दन । .
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मांगीलाल मंगलचन्द तातेड़ 8 . जनरल मर्चेन्ट एण्ड कमीशन एजेण्ट 33, कृषि मण्डी, मेड़ता सिटी (राजस्थान) 341510
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