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योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-३६८
देखकर उन्हें अत्यन्त आश्चर्य हा और महाराजा को योगिराज की आत्म-दशा के सम्बन्ध में उच्च कोटि का विचार आया।
महाराजा को पुत्र-प्राप्ति
___जोधपुर के तत्कालीन महाराजा के पुत्र नहीं था। उन्हें नित्य अपने उत्तराधिकारी की चिन्ता रहती थी। मंत्री एवं महाराजा में विचार-विमर्श हुआ। मंत्री ने परामर्श दिया कि जैन महात्मा के रूप में प्रसिद्ध श्रीमद् अानन्दघनजी महान् योगी एवं चमत्कारी महापुरुष हैं। आशा है, उनकी सेवाभक्ति से लाभ अवश्य होगा। इससे पूर्व महाराजा ने इस सम्बन्ध में अनेक महन्तों, तान्त्रिकों तथा वैद्यों से सम्पर्क किया था। इस बार उन्होंने मन्त्री के परामर्श पर विश्वास करके श्रीमद् आनन्दघनजी की भक्ति करने का अन्त:करण से निश्चय किया। महाराजा ने योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी की सच्चे अन्तःकरण से सेवा की। फलस्वरूप रानी को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई।
इसी प्रकार से मेडता के राजा ने भी श्रीमद की सेवा-भक्ति की थी जिससे उन्हें जैन धर्म के प्रति राग हुअा। , बादशाह का बेटा ! रुक जा
एक बार तत्कालीन दिल्ली के शहंशाह का शाहजादा बीकानेर पाया था। वह हिन्दू साधुनों तथा जैन यतियों को .सताता था। एक बार साधुओं ने श्रीमद् आनन्दघनजी को शिकायत की कि "शाहजादा मार्ग में जाते समय हमारी मजाक उड़ाता है, उपहास करता है। आप इसका कोई उपाय करें।” श्रीमद् आनन्दघनजी बीकानेर शहर से बाहर जहाँ शाहजादा ठहरा हुआ था उसके आसपास घूमने लगे। एक दिन शाहजादा अश्व पर सवार होकर घूमने के लिए जा रहा था। उसने मैले-कुचैले वस्त्र पहने वृद्ध यति की मजाक की। योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी ने इतना ही कहा, "बादशाह का बेटा, रुक जा।" 'शाहजादे ने अश्व को चलाने का लाख प्रयत्न किया पर अश्व तनिक भी नहीं चला। मानों वह तो वहीं चिपक गया। अन्य अश्वारोही भी वहाँ आ गये। उन्होंने अनेक प्रयास किये परन्तु अश्व वहाँ से आगे चला ही नहीं। श्रीमद् तो 'बादशाह का बेटा रुक जा' कहकर अपने स्थान पर चले गये थे। शाहजादा के साथियों ने उसे पूछा कि अश्व नहीं चलने का कोई कारण यदि मालम हो तो बताओ। शाहजादा बोला, "मुझे अन्य कोई कारण तो ज्ञात नहीं है, परन्तु मैंने एक श्वेत-वस्त्रधारी यति की