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________________ श्री आनन्दघन पदावली-३६७ वचन सिद्धि. अध्यात्मयोगी श्रीमद् आनन्दघनजी के सम्बन्ध में लोगों की दृढ़ धारणा थी कि उन्हें 'वचन-सिद्धि' प्रकट हुई थी। जो व्यक्ति वचनसमिति का सम्यक् परिपालन करते हुए विशेष काल तक वचोगुप्ति में रहते हैं तथा नाभिकमल में ध्यानस्थ होकर घण्टों तक पराभाषा में तन्मय हो जाते हैं उनके 'वचन-सिद्धि' प्रकट होती है। जो ध्यानी व्यक्ति कभी किसी को अभिशाप न देता हो, जो किसी का अहित करने का कदापि विचार तक नहीं करता हो और जिसके हृदय तथा वाणी में एकता हो उस आत्म-ध्यानो व्यक्ति के 'वचन-सिद्धि' प्रकट हो जाती है । राजा-रानी का मिलाप हो उसमें प्रानन्दघन को क्या ? ___ एक बार योगिराज श्रीमद् अानन्दघनजी जोधपुर के समीप पर्वतोय कन्दरामों में ध्यान करते और आसपास के गांवों में भिक्षार्थ जाया करते थे। जोधपुर के महाराजा का अपनी पटरानी के साथ कुछ समय से मन-मुटाव चल रहा था। महारानी ने महाराजा को वश में करने के अनेक प्रयत्न किये परन्तु वह उन्हें वश में नहीं कर सकी। उनमें मन-मुटाव चलता रहा। एक दिन किसी व्यक्ति ने महारानी को कहा कि यदि योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी की कृपा हो जाये तो आपका काय सिद्ध हो सकता है। महारानी के मन में श्रीमद् के प्रति श्रद्धा हो गई और वह अपनी सखियों के साथ श्रीमद् के दर्शनार्थ गई । तत्पश्चात् वह अनेक बार योगिराज के दर्शनार्थ आती रही। एक दिन अवसर पाकर महारानी ने श्रीमद् को अपने मन की बात कही और निवेदन किया कि, “आप मुझे कृपा करके कोई ऐसा यन्त्र बनाकर दें कि जिससे राजा का मेरे प्रति प्रेम उत्पन्न हो और हमारा पारस्परिक मनमुटाव समाप्त हो ।" श्रीमद् आनन्दघनजी ने कहा "ला, एक पत्र ला" रानी ने उन्हें पत्र लाकर दिया। श्रीमद् ने उस पत्र पर लिखा, "राजारानी दोनों का मिलाप हो इसमें आनन्दघन को क्या ?" महारानी ने उस कागज को यन्त्र-रूप मानकर घर जाकर उसे एक ताबीज में डाल दिया। उस दिन से महाराजा का रानी पर प्रेम बढ़ता रहा। महारानी को लगा कि महाराज मेरे वश में हो गये हैं। एक दिन अन्य रानियों ने राजा के कान भरे कि महारानो ने तो श्रीमद् आनन्दघनजी के पास वशीकरण यन्त्र बनवाकर आप को अपने वश में किया है। महाराजा ने कला से उस ताबीज में से यंत्र निकाल कर पढ़ा तो उसमें लिखित शब्दों को
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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