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श्री प्रानन्दघन पदावली-३८७
(५) राग - काफी भाज चेतन घर पावे, देखो मेरे सहियो ॥ प्राज. काल अनादि कियो परवश ही अब निज चित्त ही चितावे ।
देखो० ॥ १॥ जनम जनम के पाप किये तो सो निधनमांहि बहावे । श्री जिन प्राज्ञा सिर पर धरके परमानन्द गुण गावे ।
देखो० ॥ २॥ देत जलांजलि जगहि फिरण कु,
. . . फिर के न जगत में प्रावे । विलसत सुख पर प्रखंडित 'प्रानन्दघन' पद पावे ।
.. . . देखो० ॥३॥
. . (६) राग - काफी कब घर चेतन पावेंगे, सखीरी लेउँ बलैया बार बार । रयण दिना मैनु ध्यान तुषाढ़ा, कबहुक दरश दिखावेंगे।
कब० ॥१॥ विरह दिवानी फिरूं ढूढ़ती पिउ पिउ करत पुकारेंगे। पिउ जाय मिले ममता से, काल अनन्त गमावेंगे ।
कब० ॥ २॥ करू उपाय णक में उद्यम अनुभौ मित्र बुलावेंगे। माय उपाय करके अनुभव, नाथ मेरा समझायेंगे।
कब० ॥ ३ ॥ अनुभव चेतन मित्र मिले दो, सुमति निसाण घुरावेंगे। विलसत सुख प्रानन्द लीला में, अनुभव प्राप जगावेंगे ।
कब० ।। ४ ।।