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प्रानन्दघनजी के कतिपय अप्रकाशित पद
आनन्दघनजी के पदों के जो संग्रह प्रकाशित हुए हैं उनमें पदों की संख्या भिन्न-भिन्न है। कई पद ऐसे हैं जो स्पष्ट रूप से श्रीमद् आनन्दघनजी के नहीं हैं। प्रानन्दघनजी के पदों में समय-समय पर अन्य कवियों के पद जोड़-जोड़ कर उनमें वृद्धि होती गई। निम्नलिखित १५ पद अभी तक किसी भी संग्रह में प्रकाशित हुए प्रतीत नहीं होते। इनमें से कतिपय पद तो अन्य भक्त कवियों द्वारा रचित प्रतीत होते हैं और कुछ पद श्रीमद्
आनन्दघनजी द्वारा रचित भी हो सकते हैं। वे पन्द्रह अप्रकाशित पद यहाँ दिये जा रहे हैं:
(१) राग - प्रासावरी माई प्रीति के फंद परो मत कोई। लाज संकुच सुधि बुधि सब बिसरी, लोक करे बदगोई । . ..
माई० ।। १ ॥ प्रसन वसन मन्दिर न सुहावे, रैन नैन भरि रोई । • नींद न आवे विरह सतावे, दुख की वेलि मैं बोई ।
__ माई० ॥ २ ।। जेता सुख सनेह का जानो, तेता दुख फिर होई। 'लाभानंद' भले नेह निवारई, सुखीय होइ नर सोई ।
माई० ।। ३ ।।
..... (२) राग - विहाग चौतालो .... हे नैना तोहे बरजो, तू नहीं मानत मोरी सीख ।
नैना० । टेक बरज रही बरजो नहीं मानत, घर-घर माँगत रूप भीख ।
नेता० ॥ १ ॥