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बीकानेर के श्री अगरचंदजी नाहटा के संग्रह से
प्राप्त दो स्तवन श्री आदि जिन स्तवन
(राग प्रभाती) आज म्हारे च्यारू मंगल चार । देख्यो मैं दरस सरस जिनको, सोभा सुन्दर सार ।
आज० ॥ १॥ छिन छिन जिन मनमोहन अरचौ, घनकेसर घनसार । धूप उखेवी करो प्रारती, मुख बोलो जयकार ।
आज० ।। २ ।। विविध भाँति के पुष्प मंगावो, सफल करो अवतार । समवसरण प्रादीसर पूज़ौ, चौमुख प्रतिमा चार ।
प्राज० ॥ ३ ॥ हीये धरि बारह भावना भावो, ए प्रभु तारणहार । सकल संघ सेवकः जिनजी को 'पानन्दघन' अवतार ।
आज० ॥ ४॥ चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन ऋषभ जिनेसर राजीउ मन भाय जुहारोजी। प्रथम तीर्थंकर पति राजिउ परिगह परिहारोजी ॥ १ ॥ विजयानंदन वंदीए, सब पाप पलाय जी। जिम सूस्यर नंदीए, सुर नर मन भायजी ॥ २ ॥ संभव भव-भय टालतो, अनुभव भगवन्तजी। मलपति, गज-गति चालतो, खेवे सुर नर संतजी ॥ ३ ॥