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________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-३७४ अभिनंदन जिन जय करू, करुणा रस धारजी। मुगति सुगति नायक वरू, मद मदन निवारजी ॥ ४॥ सुमति सुमत दातारु हुँ, प्रणमु कर जोडिजी। कुमति कुमति परिहार कु, अन्तराय परि छोडिजी ।। ५ ।। पदम प्रभु प्रताप सूं परिवादी विभंगीजी। जिम रवि-केहरी व्याप सू, अन्धकार मतंगजी ॥ ६ ॥ श्री सुपास निज वासतें, मुझ पास निवासजी।। कृपा करि निज दास नेइ, दीजइ सुखवासजी ॥ ७ ॥ चंद्र प्रभु मुख चंदलो, दीठां सब सुख थायजी। .. उपसम रस भर कदलो दुख दालिद्र जायजी ।। ८ ।। सुविधि सुविधि विधि, दाखवइ राखइ निज पासजी। नवम अठम विधि दाखवइ, केवल प्रतिभासजी ॥ ६ ॥ सीतल सीतल जेम अमी, कामित फलदायजी। भाव सु तिकरण सुध नमि, भवयण निरमाइजी ।। १० ।। श्री श्रेयांस इग्यारमो, जिनराज बिराजे जी। ग्रह नवि पीडइ बारमो जस सिर परे गाजे जी ॥ ११ ॥ वासपूज वसुपूज्य नरपति कुल-कमल दिनेशजी। आस पूरे सुरनर जती, मन तणीय जिनेशजी ।। १२ ।। विमल विमल प्राचारनी, तुझ शासन चाह जी। घट पट कट निरधार नइ, जिम दीपइ उमाहजी ॥ १३ ।। अनन्त अनन्त न पामिये, गुण गण अविनासजी। तिन तुझ पद-कज, कामीइ, गणधर पद पासिजी ।। १४ ॥ धरम धरम तीरथ करी, पंचम गति दाइजी.। . ए कंतक मत मद हरी, जिण बोध सवाइजी ।। १५ ।।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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