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________________ श्री श्रानन्दघन पदावली - ३६६ श्री महावीर जिन स्तवन (पंथड़ो निहाल रे बीजा जिन तणो रे - ए देशी ) चरम जिरणेसर विगत सरूपनुं रे, भावू केम स्वरूप । साकारी विरण ध्यान न संभवे रे, ए अविकार अरूप | आप सरूपे प्रातम मां रमे रे असंख उक्कौस साकारी पदे रे, रूप नहीं कइये बंधन घट युं रे, . बंध मोख विरण सादि अनंत नुं , तेहना धुर बे भेद | निराकारी निरभेद | चरम ० ।। २ । सूखमनाम करम निराकार जे रे तेह भेदे नहीं अंत । निराकार जे निरगत करम थी रे, तेह प्रभेद अनंत । चरम० ।। ३ । चरम० ।। १ । बंध न मोख न कोय | भंग संग किम होय । द्रव्य बिना तिम सत्ता नवि लहे रे, सत्ता विरण स्यों रूप । रूप बिना किम सिद्ध अनंतता रे, भावू प्रकल सरूप । चरम० ।। ५ । अंतिम भव गहिणे तुझ भावनु रे, भावस्युं तइये 'श्रानन्दघन' पद पामस्युं रे, श्रातम चरम० ।। ४॥ प्रीतमता परणित जे परिणम्या रे, मुझ भेदाभेद । तदाकार विरण मारा रूप नुरे, ध्यावू विधि प्रतिषेद । चरम० ।। ६ । उनकी प्रति में ही है, अन्य किसी प्रति में नहीं । सुद्ध सरूप । रूप अनूप । चरम० ।। ७ ।। टिप्पणी :- यह स्तवन भी श्री ज्ञानसारजी द्वारा रचित है । यह
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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