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श्रीमद् प्रानन्दघनजी कृत चौबीसी के अतिरिक्त स्तवन · एवं उनके नाम से प्रकट अन्य रचनायें
श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन
(शान्ति जिन इक मुझ विनती - ए देशी) पासजिन ताहरा रूप नु, मुझ प्रतिभास किम होय रे । तुझ मुझ सत्ता एकता, अचल विमल प्रकल जोय रे ।
पास० ।। १ ।। तुझ प्रवचन वचन पक्ष थी, निश्चय भेद न कोय रे । विवहारे लखि देखिये, भेद प्रतिभेद बहु लोय रे ।
पास० ॥ २॥ बंधन मोख नहीं निश्चये, विवहारे भज दोय रे । प्रखंड अनादि नविचल कदा, नित्य अबाधित सोय रे ।
पास० ॥ ३ ॥ अन्वय हेतु वितरेक थी, प्रांतरो तुझ मुझ रूप रे । अंतर मेटवा कारणे, आत्म सरूप अनूप रे ।
पास० ॥ ४॥ आतमता परमात्मता, शुद्ध नय भेद न . एक रे । अवर आरोपित धर्म छे, तेहना . भेद अनेक रे ।
पास० ॥ ५॥ धरमी धरमथी एकता, तेह मुझ रूप प्रभेद रे । एक सत्ता लख एकता कहे, ते मढमति खेद रे ।
पास० ।। ६ ॥ प्रातम धरम ने अनुसरी, रमे जे आतमराम रे।। 'प्रानन्दघन' पदवी कहे, परम प्रातम तस नाम रे ।
पास० ।। ७ ।। टिप्पणीः-यह स्तवन श्रीमद् आनन्दघनजी का नहीं है। श्री ज्ञानसारजी कृत इस स्तवन को 'पानन्दघनजी' के नाम से प्रकट किया गया है। यह स्तवन श्री ज्ञानसारजी की प्रति में ही है। अन्य मुद्रित प्रतियों में यह स्तवन नहीं है।