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________________ श्री आनन्दघन पदावली-३५१ भ्रमर लट को चटका देता है और वह लट स्वयं भ्रमर बन जाती है जिसे समस्त संसार देखता है ।। ७ ।। विवेचनः-भ्रमर लट को स्वनिर्मित मिट्टी के घर में रख देता है और फिर उस घर के समक्ष भनभनाता है और वह लट कुछ दिनों के पश्चात् भ्रमर बनकर बाहर आती है। यह बात समस्त संसार देखता और जानता है; उसी प्रकार से वीतराग मनुष्य जिनेश्वर तुल्य बन जाता है ॥ ७ ॥ अर्थ-भावार्थः-चूणि (विवेचन), भाष्य (सूत्रों का अर्थ), सूत्र (आगम), नियुक्ति (पदच्छेद पूर्वक अर्थ विवेचन), वृत्ति (टीका) तथा गुरु परम्परागत अनुभव-ज्ञान ये समय पुरुष के (सिद्धान्त पुरुष के) छह अंग हैं। जैन दशन के इन छह अंगों में से एक का भी जो छेदन करता है, एक का भी उत्थापन करता है, वह दुर्भवी है अर्थात् नीच गति में जानेवाला है ॥ ८ ॥ अर्थ-भावार्थः-(जो जिनेश्वर रूप वीतराग बनकर जिनेश्वर परमात्मा को आराधना करता है वह अवश्य ही जिनेश्वर बन जाता है। केवल जिनेश्वर का अनुयायी बनने से जिनेश्वर नहीं बना जा सकता, उसके लिए साधना करनी पड़ती है) शास्त्रानुसार चारित्र की शुद्ध सेवा प्राप्त करने के जिज्ञासु अध्यात्म योगिराज श्रीमद् आनन्दघन जी महाराज के चरणों में . कोटि-कोटि वन्दन ! 0633499, 622238 - Raj Laxmi Print-N-Pack to (Specialist in Patta Folders, Booklets & Stickers) Shop No. 4038, Shree Mahaveer Tex. Mkt. - Ring Road, Surat-2 (Gujrat)
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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