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श्री प्रानन्दघन पदावली - ३३५
श्रर्थ - भावार्थ - जिसने मन को वश में कर लिया उसने सब कार्य
सिद्ध कर लिया। इस बात में कोई खोट नहीं है, परन्तु इसे वश में
करने का कोई दम्भ करे और कहे कि मैंने मन को वश में कर लिया है तो मैं यह मानने के लिए तत्पर नहीं हूँ, क्योंकि मन को जीतने की यह एक ही बात अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं दुष्कर है ॥ ८ ॥
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अर्थ - भावार्थ - हे नाथ ! मैंने यह बात आगमों से ज्ञात कर ली है कि आपने कठिनाई से आराधना करने योग्य अर्थात् कठिनाई से वश मेंने योग्य मन को वश में कर लिया है, जीत लिया है । हे अनन्त आनन्द के स्वामी प्रभो ! यदि आप मेरा मन वश में कर लोगे तो मैं उसे प्रत्यक्ष प्रमाण से जान लगा ।। ६ ।।
( १८ )
श्री श्ररनाथ जिन स्तवन
( राग - पर जियो मारू - ऋषभ - वंश रयणयरू - ए देशी ) धरम परम अरनाथ नो, किम जारण भगवंत रे । स्व पर समय समझाविये, महिमावंत
महन्त रे ।
धरम० ।। १ ।।
शुद्धातम अनुभव सदा, स्व समय यह पर बडी छहाँड़ी जे पड़े, ते पर समय
तारा नखतं ग्रह चंदनी, दरसरण ज्ञान चरण थकी,
भारी पीलो चीकणो, कनक परजाय दृष्टि न दीजिये, एकज
दरसण ज्ञान चरण थकी, निर विकलप रस पीजिये,
ज्योति दिनेश सकति निजातम
अलख
सुद्ध
विलास रे ।
निवास
रे ।
धरम० ।। २ ॥
अनेक कनक
मझार रे ।
धार रे ।
धरम० ।। ३ ।।
तरंग रे ।
अभंग रे ।
धरम ० ॥। ४ ॥
सरूप अनेक रे ।
निरंजन एक रे ।
धरम० ।। ५ ।