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________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-८ आत्मा से सम्बन्धित उपदेश देते थे और अध्यात्म ज्ञान का अविरल प्रवाह करते थे तब जैन एवं अजैन सब उन्हें अध्यात्मज्ञानी साधु कहते थे। जो-जो व्यक्ति उनके सम्पर्क में आते थे, उन्हें ही उनके अगाध अध्यात्मज्ञान का पता लगता था। वे अपनी निर्भयता की परीक्षा करने के लिए गाँव के बाहर स्थित श्मसान में रात्रि के समय ध्यान-मग्न रहते थे। वे भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी और वैताल आदि से कदापि भयभीत नहीं होते थे, बल्कि उनके ध्यान के प्रभाव से भूत-पिशाच उनको कोई उपद्रव नहीं कर सकते थे। वे दो-दो दिन, तीन-तीन दिन पश्चात् भिक्षा ग्रहण करते थे अर्थात् क्षुधा-निवारणार्थ, संयम-साधनार्थ तथा देह की रक्षार्थ आहार-पानी ग्रहण करते थे। यशोविजयजी का अध्यात्म प्रवचन : आगम-ज्ञाता एवं जन-शासन के अनन्य हीरे उपाध्याय श्री यशोविजयजी विहार करते-करते अाबू पाये। उस समय वे एक ख्याति प्राप्त एवं बहुश्रुत सन्त माने जाते थे। उन्होंने सुना था कि आनन्दघनजी अध्यात्म-ज्ञान के प्रबुद्ध विद्वान् हैं। आनन्दघनजी ने भी यशोविजयजी की विद्वत्ता की प्रशंसा सुनी थी। वे उनको उस प्रदेश में पाया हया जानकर उनसे मिलने की इच्छा से अकेले निकल पड़े और उपाश्रय में साधुओं के मध्य बैठ गये। यतियों के साथ बैठने से उपाध्यायजी ने उन्हें पहचाना नहीं। यशोविजयजी ने अध्यात्म ज्ञानविषयक प्रभावशाली प्रवचन किया, जिसका साधु-साध्वियों, श्रावक तथा श्राविकाओं पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वे सब डोलने लगे। जब उपाध्यायजी की दृष्टि उन जीर्ण वेषधारी साधु पर पड़ी तो उन्होंने उनमें कोई परिवर्तन नहीं पाया। इस पर वे बोले, 'अरे, वृद्ध साधु ! तुम्हारे पल्ले कुछ पड़ा अथवा नहीं ?' आनन्दघनजी ने उत्तर दिया-'आपश्री शास्त्रों में अधिक दक्ष प्रतीत होते हैं।" इस उत्तर से उन्हें पता लग गया कि यह कोई ज्ञानी है। उपाध्यायजी को ज्ञात हुआ कि यह प्रानन्दघन है। इस पर उन्होंने आनन्दघनजी को मानपूर्वक उस श्लोक की व्याख्या करने को कहा, जिसकी व्याख्या वे स्वयं कर रहे थे। उनके अत्यन्त प्राग्रह से प्रानन्दघनजी ने श्लोक की व्याख्या प्रारम्भ की ओर वह व्याख्या तीन घंटे तक चली। श्री आनन्दघनजी के व्याख्या सम्बन्धी प्रवचन से श्रोता मुग्ध हो गये। स्वयं उपाध्यायजी भी मुग्ध हो गये। उन्होंने अानन्दघनजी की स्तुति की, क्योंकि हीरे की परीक्षा जौहरी ही कर सकता है।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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