________________
श्री आनन्दघन पदावली-३१६
गच्छना · भेद बहुनयण निहालतां , • तत्त्व नी वात करतां न लाजे । उदर भरणादि निज काज करता थकां,
मोहनडिया कलिकाल राजे ॥ धार० ॥ १ ।। वचन निरपेख व्यवहार झूठो कह्यो ,
- वचन सापेख व्यवहार सांचो। वचन निरपेख व्यवहार संसार फल ,
. सांभली प्रादरी कांइ राचो ।। धार० ।। ४ ॥ देव गुरु धर्म नी शुद्धि कहो किम रहे ,
किम रहे शुद्ध श्रद्धान आयो। शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया करी ,
छारि परि लीपणो तेह जाणो । धार० ।। ५ ।। पाप नहि कोई उत्सूत्र भाषण जिस्यो , . धर्म नहि कोई जग सूत्र सरीखो। . सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे , ...... तेहनो शुद्ध चारित्र परिखो ।। धार० ॥ ६ ॥ एह उपदेशनु सार संक्षेप थी ,
जे नरा चित्तमां नित्य ध्यावे । ते नरा दिव्य बहुकाल सुख अनुभवी ,
नियत 'प्रानन्दघन' राज पावे ।। धार० ।। ७ ।।
शब्दार्थ -सोहिलो सरल। दोहिलो=कठिन । बापड़ा=बिचारा । रडवडे = भटकते हैं। गच्छना=समुदाय के। निहालतां देखते हुए । मोहनडिया=मोह में फंसे हुए। निरपेख=निरपेक्ष, तटस्थ । सापेख = सापेक्ष, जिनवचनानुसार । रांचो प्रसन्न होना। पादरी-ग्रहण करके । कांइ= क्या। श्रद्धान=विश्वास । प्राणो-लामो, प्राप्त करो। छारि=मिट्टी पर । लीपणोलीपना। उत्सूत्र=जिन वचनों के विरुद्ध । सूत्र=आगम शास्त्र । सरीखो - समान । परिखो परीक्षा करो।