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योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य - ३१२
अर्थ - भावार्थ:-श्री श्रेयांसनाथ जिनेश्वर अन्तर्यामी हैं । वे सुप्रसिद्ध आत्मगुणों में रमण करने वाले हैं। उन्होंने पूर्णतः आत्म-तत्त्व को प्राप्त किया है और स्वाभाविक भाव से मोक्ष गति प्राप्त कर ली है ।। १ ।।
समस्त संसारी तो इन्द्रिय-सुखों में रमण करते हैं । केवल मुनिवर ही प्रात्मिक सुख में लीन रहने वाले हैं । जो मुख्यतः प्रात्मानन्द में लीन रहते हैं मात्र वे ही निस्पृह होते हैं ||२|
जो प्रत्मार्थी श्रात्मा के लिए क्रिया करता है वह अध्यात्म प्राप्त करता है, परन्तु जो किसी प्रकार की कामना से क्रिया करता है वह चारों गतियों में भ्रमण की साधना करता है, वह अध्यात्म नहीं कहलाता ॥३॥
नाम मात्र के अध्यात्म शब्द को, स्थापना अध्यात्म को तथा द्रव्य अध्यात्म को छोड़ो और ज्ञान दर्शन रूप भाव अध्यात्म की साधना करो, उसमें तन्मय हो जाओ ||४||
सद्गुरु से अध्यात्म शब्द का अर्थ सुनकर संकल्प - विकल्प रहित शुद्ध आत्म-भाव को ग्रहण करो, उसका सम्मान करो। केवल अध्यात्म शब्द आध्यात्मिकता नहीं है । वह तो भाव में है । यह जानकर क्या त्याग करने योग्य है और क्या ग्रहण करने योग्य है, उसमें अपनी बुद्धि लगा ।। ५ ।।
योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघनजी के पद-पङ्कज में कोटि-कोटि वन्दन
दुकान 20103, 30203, 20203 घर 20148
* मैसर्स जैन ट्रेडर्स x
गुड़, शक्कर, कपासिया के व्यापारी व कमीशन एजेण्ट
दुकान नं. 34, कृषि मण्डी, मेड़ता सिटी ( राजस्थान ) 341510
सम्बन्धित फर्म
सरावगी ट्रेडर्स, मेड़ता सिटी ( राज० )
O.203, R.148