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________________ श्री श्रानन्दघन पदावली - ३११ ( ११ ) श्री श्रेयांस जिन स्तवन ( राग - गौड़ी श्रहो मतवाले साजना - ए देशी ) श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी, श्रातमरामी नामी रे अध्यातम मंत पूरण पामी, सहज मुगति गति गामी रे । श्री० ॥ १ ॥ सयल संसारी इंद्रियरामी, मुनिगरण श्रातमरामी रे । मुख्यपणे जे आतमरामी, ते केवल निःकामी रे । श्री० ।। २ ।। निज सरूप जे किरिया साधे, ते अध्यातम लहिये रे । जे किरिया करि चउ गति साधे, ते न अध्यातम कहिये रे । श्री ० ० ।। ३ ।। नाम अध्यातम ठवरण अध्यातम, द्रव्य अध्यातम भाव अध्यातम निजं गुण साधे, तो तेह थी रढ छंडो रे । मंडो रे । अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जारण वस्तुगते जे वस्तु प्रकासे, 'श्रानन्दघन' मत श्री० ० ।। ४ ।। शब्द अध्यातम प्ररथ सुणी ने, निरविकल्प आदरजो रे । शब्द अध्यातम भजना जाणी, हानि ग्रहण मति धरजो रे । श्री० ॥ ५ ॥ लबासी रे । वासी रे । श्री ० ० ।। ६ ।। शब्दार्थ --- प्रतमरामी = आत्म स्वरूप में रमण करने वाले । नामी= प्रसिद्ध | अध्यातम = प्राध्यात्मिक । मत = तत्त्व । पामी = प्राप्त करके । गामी = जाने वाले । सयल = सब | इंद्रियरामी - इंद्रिय सुख में रमण करने वाला । निःकामी = निष्कामी । ठवरण = स्थापना । रढ = रटन, प्रीति । निरविकल्प = विकल्प रहित । लबासी = लबार । मत = सिद्धान्त । वासी निवासी । ==
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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