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________________ श्री आनन्दघन पदावली-३०६ अर्थ-भावार्थः-श्री शीतलनाथ जिनेश्वर की त्रिभंगी अत्यन्त ललित है, जिसकी विविध भंगिमा अत्यन्त मन-मोहक है। उनमें करुणा रूपी कोमलता के साथ तीक्षणता भी है और इन दोनों से अद्भुत उनकी उदासीनता भी शोभायमान है ।। १ ॥ समस्त, जीवों के लिए हितकर करुणा उनकी कोमलता है। ज्ञानावरणीय आदि कर्मों को विदीर्ण करने में जो उनमें कठोरता है वह उनकी 'तीक्ष्णता' है। श्री शीतलनाथ भगवान त्याग एवं ग्रहण परिणामों से रहित हैं अर्थात् सम-परिणामी हैं । यह आपकी विलक्षण उदासीनता है ।। २।। दूसरों के दुःखों को नष्ट करने की इच्छा आपकी करुणा है । पौद्गलिक दुःखों में प्रसन्नता यह आपकी 'तीक्ष्णता' है। परिषह सहन करने में प्रसन्नता ही आपकी तीक्ष्णता है। कोमलता एवं तीक्ष्णताइन दोनों से अद्भुत आपकी 'उदासीनता' है। ये तीनों विरोधी भाव एक साथ एक ही स्थान पर कैसे सफल हो सकते हैं ? परन्तु आत्मानन्द में रमण करने वालों के लिए सब सम्भव है ॥ ३ ॥ समस्त मनुष्य कर्म-मल से भयभीत हैं, जन्म-मरण-रोग-शोक आदि से सब त्रस्त हैं। श्री शीतलनाथ भगवान की अभयदान रूपी करुणा है; . भावों में दृढ़ता आपकी 'तीक्ष्णता' है। वे बाईस परिषहों से विचलित - श्री शीतलनाथ प्रभु अनन्त ज्ञान, दर्शन के स्वामी हैं। उनकी भक्ति में लीन आध्यात्मिक योगी श्री आनन्दघनजी के चरणारविन्द में शत-शत नमन । 1. 20054 दुकान - 20132 घर - शाह उदयराज सुरेशचन्द चोपड़ा 8 ग्रेन मर्चेण्ट एण्ड कमीशन एजेण्ट दुकान नं. 4, कृषि मण्डी, मेड़ता सिटी (राजस्थान) 341510
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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