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________________ श्री श्रानन्दघन पदावली - ३०५ (ε) श्री सुविधि जिन स्तवन राग - केदारो - इम धन्नो धण ने परचावे-ए देशी ) सुविधि जिणेसर पाय नमीने, शुभ करणी इम कीजे रे प्रति घण उलट अ ंगधरीने, प्रह ऊठी पूजीजे रे । सुवि० ।। १ ।। 1 द्रव्य भाव सुचि भाव धरीने, हरखि देहरे जइये रे । दह तिग परण अहिगम सांचवतां, एकमनांधुर • थइये रे । सुवि० ॥ २ ॥ o कुसुम अक्खत वर वास सुगंधो, धूप दीप मन साखी रे | पूजा पर भेद सुणी इम, गुरु मुख श्रागम भाखी रे | सुवि० ।। ३ ।। एहन फल दुइ भेद सुरंगीजे, अन्तर ने परम्पर रे । प्रारणा पालन चित्त प्रसत्ति, मुगति सुगति सुर-मन्दिर रे । सुवि० ॥ ४ ॥ फूल प्रक्खत वर धूप पइबो, गंध निवेज, फल जल भरि रे । • अंग अग्र पूजा मिलि ड विधि, भावे भविक शुभ गति वरि रे । सुवि० ॥ ५ ॥ सत्तर भेद इकवीस प्रकारे, श्रट्टोतर सत भेदे रे । भाव पूजा बहुविधि निरधारी, दोहग दुरगति छेदे रे । सुवि० ॥ ६ ॥ तुरिय भेद पडिवत्ती पूजा, उपसम खीण चउहा पूजा उतरायणे, भाखी सयोगी रे | केवलभोगी रे | सुवि० ॥ ७ ॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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