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________________ श्री आनन्दघन पदावली-३०१ ये सातवें जिनेश्वर भगवान सातों प्रकार के महान् भयों (इहलोकभय, परलोक-भय, आकस्मिक-भय, आजीविका-भय, आदान-भय, अपयशभय और मृत्यु-भय) तथा सात आध्यात्मिक महाभयों (काम, क्रोध, मद, हर्ष, राग, द्वेष और मिथ्यात्व) को नष्ट करने वाले हैं। अतः सावधान होकर तथा मन लगाकर इन सातवें तीर्थंकर भगवान की सेवा धारण करो ॥२॥ . ये सातवें जिनेश्वर श्री सुपार्श्व स्वामी उपद्रव-नाशक होने से 'शिव' हैं, कल्याणकारी होने के कारण 'शंकर' हैं, आत्म-साम्राज्य के शासक होने के कारण 'जगदीश्वर' हैं, ज्ञानमय एवं आनन्दमय होने से ये 'चिदानन्द' हैं, आपने ऐश्वर्य प्राप्त कर लिया है अतः भगवान हैं, राग-द्वेष-विजयी होने के कारण जिन हैं, कर्म-रिपुत्रों के नाशक होने से 'अरिहन्त' हैं, चतुर्विध संघ के संस्थापक होने के कारण 'तीर्थंकर' हैं, ज्ञान-ज्योति से प्रकाशित होने के कारण “ज्योति स्वरूप' हैं और इनकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती अतः 'असमान' हैं। इस प्रकार ये अनेक नामों से जाने जाते हैं ॥३॥ नेत्रों के द्वारा नहीं देखे जाने के कारण ये 'अलख' हैं, वासना रहित होने के कारण ये 'निरंजन' हैं, प्राणियों के प्रति वात्सल्य-भाव रखने के कारण ये 'वच्छलु' हैं तथा समस्त प्राणियों के 'विश्राम' स्वरूप हैं। ज्ञानामृत का पान करा कर सबको अभय करने के कारण ये 'अभयदानदाता' हैं। ये समस्त प्रकार से 'पूर्ण' हैं और शुद्ध आत्म-स्वरूप में निरन्तर रमण करने वाले होने के कारण 'पातमराम' हैं ।।४।। . भगवान श्री सुपार्श्वनाथ राग-रहित अर्थात् वीतराग हैं। ये मद, कल्पना, रति-अरति, भय, शोक आदि मानसिक विकारों तथा निद्रा, तन्द्रा, आलस आदि शारीरिक विकारों से रहित होने के कारण अबाधित योग वाले हैं अर्थात् केवली अवस्था में मन-वचन-काया के योग आपके लिए बाधक नहीं हैं ॥५॥ - वे पूजा के परम पात्र होने से 'परम पुरुष' हैं, परम-पद पाने के कारण परमात्मा हैं। अनन्त शक्ति रूपी ऐश्वर्य धारण करने के कारण 'परमेश्वर' हैं, 'प्रधान पुरुष' हैं। आप ही प्राप्त करने योग्य 'परम पदार्थ' हैं, सेवा एवं भक्ति करने योग्य 'परमेष्ठी' हैं और पूजा करने योग्य 'परमदेव' स्वयं सिद्ध हैं ॥६॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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