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________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-३०० इम अनेक अभिधा धरे, अनुभव-गम्य विचार, ललना। जे जाणे तेहने करे 'आनन्दघन' अवतार, ललना। श्री सुपास ।।८।। टिप्पणी--इस पद में सर्वधर्म समन्वय दृष्टि है। शब्दार्थः-सुख =आत्मिक सुख । सम्पत्ति मम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र । हेतु कारण । शान्त=स्थिरता । सुधारस =अमृत रस । सेतु=पुल । सात महाभय से तात्पर्य है-इहलोक भय, परलोक भय, आदान भय, अकस्मात् भय, आजीविका भय, अपयश भय और मृत्यु-भय । अरिहा कर्म-शत्रु नाशक अरिहन्त । असमान=अनुपम । निरंजन= निर्लेप। वच्छल वत्सल, कल्याणकारी। मद=गर्व । विधि विधाता। विरंचि - ब्रह्मा, प्रात्म गुणों की रचना करने वाले। विश्वंभरू=संसार में आत्म-गुणों के पोषक । ऋषिकेस इन्द्रियों के स्वामी। घणी स्वामी। अभिधा=नाम, गुणनिष्पन्न नाम । अर्थ-भावार्थ-श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की भक्तिपूर्वक वन्दना करें, जो सांसारिक एवं अनन्त आत्मिक सुख-सम्पत्ति के हेतु हैं और जो वैराग्य रूपी अमृत के समुद्र हैं तथा भवसागर को पार करने के लिए पुल के समान हैं ॥१॥ - - - - - - - - - - - सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ मेरे अन्तर का अन्धकार नष्ट करें। वे जगदीश्वर, चिदानन्द, जिन और अरिहन्त हैं। उन सुपार्श्वनाथ का नित्य रटन करने वाले योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी का कोटि-कोटि वन्दन । 20133 दुकान 20193 घर गुलाबचन्द प्रकाशचन्द 8 ग्रेन मर्चेन्ट एण्ड कमीशन एजेण्ट 29, कृषि मण्डी, मेड़ता सिटी - 341510 (राजस्थान)
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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