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श्री आनन्दघन पदावली-२६६
(७) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन
(राग-सारंग मल्हार ललना नी देशी) श्री सुपास जिन वंदिये, सुख सम्पत्ति नो हेतु, ललना। शान्त सुधारस-जलनिधि, भवसागर मां सेतु, ललना ।
श्री सुपास ॥ १॥ सात महाभय टालतो, सप्तम जिनवर देव, ललना । सावधान मनसा करो, धारो जिन-पद सेव, ललना ।
श्री सुपास ।। २ ।।
सिव संकर जगदीश्वरू, चिदानन्द भगवान, ललना । जिन अरिहा तीर्थंकरू, जोति स्वरूप असमान, ललना ।
श्री सुपास ।। ३ ॥ अलख निरंजन वच्छलू, सकल जन्तु विसराम, ललना । अभयदान दाता सदा पूरण प्रातम राम, ललना ।
श्री सुपांस ।। ४ ।। वीतराग मद कल्पना, रति अरति मय सोग, ललना । निद्रा तन्द्रा दुरदसा, रहित अबाधित जोग, ललना ।
श्री सूपास ।। ५ ।। परम पुरुष परमातमा, परमेसर परधान, ललना। परम पदारथ परमेष्ठी, परम देव परमान, ललना ।
श्री सुपास ।। ६ ॥ विधि बिरंचि विश्वभरू, ऋषीकेस जगनाथ, ललना । अघहर प्रघमोचन धणी, मुगति परमपद साथ, ललना।
श्री सुपास ।। ७ ॥