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________________ श्री प्रानन्दघन पदावली - २७१ माँचो बाल्यो वरलो बाल्यो, बाली डोला की डांडी | छपरो बाल्यो सूपरो बाल्यो, तो न चढ़ी इक हांडी । तीन पाव की सात बनाई, सात पाव की एक । परण्यो डाकी सातों खा गयो, हुं सुलच्छनी एक । न्हाई धोई बेस बरगाई, तिलक सूरज सामी अरज करे छे, कब गंगा न्हाई गोमती न्हाई, बिच में श्राई घाटी । घर में आई जोवियो तो, श्रजहि न प्रो भाटी । करकशा० ।। ४ ।। • करकशा० ।। ५ ।। - करकशा० ।। ६ ।। कर्यो अपार । मरसी भरतार | श्रानन्दघन कहे सुन भाई सांधु, एह पद है सुखदाई । इस पद की निन्दा करे तो, नरक निगोद निसाणी । बालू =जलाऊँ । छाणा = गोबर के कण्डे । | ऊँखल = जिसमें पीसरण) = पीसने के लिए रखी हुई वस्तु छाजला । घट्टी = चक्की । भूसी अलग की जाती है । खाट । वरलो बरगद या की। डांडी = डंडी । भाटी करकशा० ।। ७ ।। टिप्पणी - यह पद भी श्रीमद् श्रानन्दघन जी का नहीं है । आठवीं गाथा में तुक भी नहीं मिलती । 'आनन्दघन कहे सुन भाई साधु' इस प्रकार कहीं भी श्रीमद् श्रानन्दघन जी के पदों में नहीं मिलता । इस प्रकार की छाप तो कबीर के पदों में दृष्टिगोचर होती है । यह पद श्री जगड़जी के संग्रह में एक पत्र पर लिखा हुआ मिला है । करकशा० ॥ ८ ॥ शब्दार्थ – मगरा=पर्वत । कवुना = कौा । पहुंणा - प्रतिथि | रीसाय = क्रोधित होकर । सूप = अन्न फटकने का अन्न डालकर मूसल से चन = = आटा । कूतरा = कुत्ता | माँचो = पीपल की लकड़ी । डोला की = दीवार भट, योद्धा । कद = कब |
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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