SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघनजी एवं उनका काव्य - २७० ससुराल । धनुडी = एक प्रकार का खेल । रमे = खेलना । ढींगले= टीले पर । पोढो = शयन करना । पालणे = झूले में । नाह = नाथ, पति । छोकरडाने = बच्चे को । काजे = लिए । 1 टाचकडा = खिलौना । नवी = नहीं | सुकलीणी = सुलक्षणी । भोन = भवन | पधारिया = श्राये । पति । पाँच पीढ़ी । क्यांथी = कहाँ से । सायभो= एटले = इतने में । पनोती == ܘ ( ३८ ) रे परदेशी भमरा मोसु रह्यो नहीं जाय । भंवर विलंव्यो केतकी, समके फूल खुलि जाय ॥। १ तुम बिन मोहे कल न परत है, तलफ तलफ जीउ जाय ।। २ ।। श्रानन्दघन प्रभु तुमरे मिलनवु आनन कलि कुमलाय || ३ || शब्दार्थ - विलंव्यो = लटक गया, लिपट गया । समके = समान । - चैन | आनन = मुँह, चेहरा | कल = ( ३६ ) मगरा ऊपर कवुना बोल्यो, पहुंणा प्राया तीन । पहुंगा थारी मूछां बालू, छाणा क्यों नहीं ल्यायो । करकशा नार मिली छे जी, धन्य पियाजी थारा भाग । ॥ करकशा० ॥ पहुंगा आया देखिने, देखिने, चूल्हो दियो बुझाय । दो लात पहुंगा के मारी, आप बैठी रीसाय । करकशा० ।। १ मोठ बाजरो को पीसरणो, ले बैठी अब जो पहुंगा मुझने कहसी, तो जाय घर में घट्टी घर में ऊँखल, पर घर पाडोसण सेती बात करतां, चून . भर सूप | पडूंगी कूप । करकशा० ।। २ ।। पीसण जाय । कूतरा खाय । करकशा० ।। ३ ॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy