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________________ श्री प्रानन्दघन पदावली-२६६ इणी चरखा में हुं हुं लिख्यो है, हुं हुं लिखे नहि कोय । “प्रानन्दघन या लिखे विभुति, आवागमन नहि होय रे । सुण ॥ ६ ॥ टिप्पणी - यह पद गुजराती से प्रभावित है। .. शब्दार्थ - सुरत स्मरण, ध्यान। पीजावण=रुई धुनवाना। पीजारो रुई धुनने वाला। बावल=पिता। ब्याव=विवाह । अणजाण्यो=अपरिचित । परण्यो विवाहित पति । विशेष—पद ३२, ३३, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८ व ३९ योगिराज आनन्दघन जी के प्रतीत नहीं होते। सरसती स्वामी करो रे पसाय, हं रे गाऊँ, रूडी कुल बह रे । पीउडो चाल्यो छे परदेश, घेर रही रूडु शीयल पालीये रे । ॥१॥ · हारू वारू सासरडे जाय, नानी ते धनुडी रे रमे ढींगले रे । नरपत परपत निशाले जाय, मानो ते पर्यापत पोढ़ो पालणे रे । ॥ २ ॥ बारे वरसे आव्यो रे नाह, छोकरडाने काजे टाचकडा नवी लाविमो रे । हुं तने पुछु. सुकलीणी नार, पीउ विरण छोकरडा क्याथी प्राविया रे ।। ३ ।। गोत्र देवे कर्यो रे पसाय, सायभोरे भोन पधारिया रे । एटले उठीने भाग्यो रे पीय धन्य पनोती तु कुल बहु रे ॥ ४ ॥ एहनो अनुभव लेस्ये रे जेह, तेहु पामे रूडी कुल बहु रे । . आनन्दघन जपा रे सझाय, सुणतां श्रवणे सुखहीये रे ।। ५ ।। शब्दार्थ-पसाय प्रसाद। रूडी अच्छी। पीयुडो प्रीतमा। शीयल= शील, ब्रह्मचर्य । हारू वारू=हार फिर कर। सासरडे=
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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