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________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-२ में चली आ रही किंवदन्तियों, उनके द्वारा रचित स्तवनों तथा पदों में से निकलते हृदय के उद्गारों के द्वारा ही उनका जीवन-चरित्र लिखा जा — सकता है। श्रीमद अानन्दघनजी की जन्म-भूमि कौनसी थी और उनका जन्म किस परिवार में हुआ था, इसका निर्णय होना कठिन है। कुछ लोग उनकी जन्मभूमि मारवाड़ बताते हैं, कुछ उत्तर प्रदेश बताते हैं, कुछ गुजरात बताते हैं और कुछ लोग काठियावाड़ बताते हैं। उनके जन्म के सम्बन्ध में एक अन्य मत भी है। श्री आनन्दघनजी जैन परम्परा के एक महान् सन्त योगी थे। इनका दीक्षा नाम श्री लाभानन्दजी था। मेड़ता में आप जिस स्थान पर निवास करते थे, उस स्थान का नाम लाभानन्द गवाड़ी बताया जाता है जो आज भी उसी तरह प्रचलित है। इसी गवाड़ी में आपकी छत्री बनी हुई है। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ श्री अगरचन्दजी नाहटा ने 'पानन्दघन ग्रन्थावली' की भूमिका में अपने गुरु श्री सहजानन्दघनजी का मत व्यक्त किया है कि योगिराज श्री आनन्दघनजी मेड़ता के ही एक श्रावक के तृतीय पुत्र थे। यह बात तो सर्वविदित है कि योगिराज श्री आनन्दघनजी की साधना-स्थली एवं कर्म-स्थली मेड़ता ही रही है और वे जीवन में अधिकांश समय तक मेड़ता की धरा को ही पावन करते रहे। फिर भी अनेक व्यक्ति उनके स्तवनों एवं पदों में प्रयुक्त भाषा एवं शब्दावली के आधार पर उन्हें गुजरात का ही मानते हैं और अनेक व्यक्ति उन्हें राजस्थान का मानकर अपने अनेक तर्क प्रस्तुत करते हैं। . योगिराज का जन्म अनुमानतः विक्रम संवत् १६६० का ही माना जाता है और उनका समय अनुमानत: विक्रम संवत् १६६० से विक्रम संवत् १७३० माना गया है। श्रीमद् ने ज्ञान एवं वैराग्य के योग से किन्हीं तपागच्छीय मुनिवर के पास दीक्षा अंगीकार की थी। वे श्रीमद यशोविजयजी उपाध्याय के समकालीन थे। दीक्षित होने के पश्चात् उनका चित्त वैराग्य एवं अध्यात्म में अनुरक्त रहता था। उन्होंने जैन श्वेताम्बरों एवं दिगम्बरों के अनेक शास्त्रों का पठन किया था। अपने गुरु की तरह वे तपागच्छ की समाचारी के अनुसार साधु धर्म की आवश्यक आदि क्रिया करते थे। गच्छ भेद से दूर रहकर वे अध्यात्म ज्ञान के द्वारा अपनी आत्मा को विशुद्ध एवं निर्मल बनाने का प्रयास करते थे।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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