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योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य - २५०
टिप्पणी -- यह पद श्री श्रानन्दघन जी का नहीं है | महाकवि बनारसीदास जी आगरा वाले द्वारा रचित ' बनारसी विलास' में यह पद पृष्ठ संख्या २५० पर है, तनिक अन्तर अवश्य है ।
अर्थ- भावार्थ-विवेचन - योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघन जी कहते हैं कि योगी पुरुषों के वैराग्य रूप पुत्र उत्पन्न होता है । योगी के वैराग्य पुत्र ने मोह राजा के परिवार को खोज खोज कर खा लिया । वैराग्य ने सर्वप्रथम तो ममता का नाश किया। वैराग्य के बिना ममता का नाश नहीं होता । वैराग्य ने ममता का भक्षण किया तथा माया का नाश किया । शातावेदनीयजन्य सुख और प्रशातावेदनीय जन्य दु:ख इन दोनों का भी वैराग्य ने भक्षण किया । वैराग्य ने काम एवं क्रोध दोनों का भक्षण किया । ज्ञानगर्भित वैराग्य से काम का नाश होता है । काम के वेग को दबाने के लिए ज्ञानगर्भित वैराग्य के समान अन्य कोई उपाय नहीं है | ज्ञानगर्भित वैराग्य से क्रोध को जीता जा सकता है। ज्ञानगर्भित वैराग्य ने तृष्णा का भी भक्षण किया || १॥
अर्थ - भावार्थ-विवेचन - दुर्मति दादी तथा मत्सर दादा तो वैराग्य का मुँह देखते ही मर गये । ज्ञानगर्भित वैराग्य पुत्र का जन्म होने पर आत्मा ने मंगल रूप बधाई दी और मन में अत्यन्त हर्ष माना ||२||
अर्थ- भावार्थ- ज्ञानगर्भित वैराग्य ने पुण्य एवं पाप रूप दो पड़ोसियों का भक्षण किया तथा मान जो जगत् के जीवों को अनेक प्रकार की पत्तियों में डालता है, उसका भी वैराग्य ने भक्षणं किया । लोभ का कोई नहीं है । दसवें गुणस्थानक तक लोभ की स्थिति है । स्वयं-भू रमण समुद्र का पार पाया जा सकता है, परन्तु लोभ रूपी समुद्र का कोई पार नहीं पा सकता । लोभ समस्त प्रकार के पापों का मूल है । ज्ञानगर्भित वैराग्य ने मान एवं लोभ रूप दो मामात्रों का और मोह नगर के राजा का भी नाश किया तथा तत्पश्चात् प्रेम रूपी गाँव का भी भक्षण किया || ३ ||
अर्थ - भावार्थ – ज्ञानगर्भित वैराग्य की सर्वोत्कृष्ट दशा प्राप्त करने वाला मनुष्य प्रेम में भी अधिकार प्राप्त करके दुःखी नहीं होता । उसने ज्ञानगर्भित पुत्र की उम्र बढ़ जाने पर उसका नाम 'भाव' रखा । उपशमभाव, क्षयोपशमभाव और क्षायिक भाव की वृद्धि होने पर उसकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता । अध्यात्म भाव की दशा की वृद्धि होने पर मुक्ति-सुख के पकवान का आस्वादन किया जा सकता है ।