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तन मांही निज तत्त्व है, देखे कोई पूरा। तत्त्व मिला था तत्त्व में, बाजे अनहद तूरा ।।
-श्रीमद् प्रानन्दघनजी
"प्रात्मवाद एवं कर्मवाद के प्रति सच्ची श्रद्धा होने से सम्यक्त्व की उत्पत्ति होती है। आत्मविश्वास एवं आत्मवाद का वास्तविक
मूल्य समझे बिना सच्चा वैराग्य प्रकट नहीं हो सकता। M श्रद्धा-विहीन कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हो सकती।
सच्चो प्रात्मश्रद्धा ही परम पुरुषार्थ की बीज है।"..
इस प्रकार के प्राध्यात्मिक विचारों में तन्मय योगिराज श्रीमद् प्रानन्दघनजी को कोटि-कोटि वन्दन।
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श्री महावीर ऑयल मिल्स
जगरायो (पंजाब)-१४२ ०२६ (सुनहरी किरण एवं बुलबुल ब्राण्ड शुद्ध सरसों का तेल .
प्रयोग कीजिये)