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॥ श्रीसद्गुरुभ्यो नमः ॥ "महान् अध्यात्मयोगी श्रीमानन्दघनजी म. की प्रारती।
. [ ॐ जय जगदीश हरे........राग.]
[१]
___ॐ जय जय गुरुदेवा, स्वामी जय जय गुरुदेवा; अनुभव प्रातमज्ञानी (२) प्रानन्दघन जेवा।
॥ॐ जय गुरुदेवा ।।
[२]
अध्यातम वैरागी, स्व-पर के ज्ञाता; पति परमेश्वर मानी (२) अन्तर अध्येता।
॥ ॐ जय गुरुदेवा ।।
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तरतम भावे गावे, मिथ्यातम त्यागी; घट घट रोमे रोमे, (२.) प्रभु भक्ति जागी।
॥ ॐ जय गुरुदेवा ॥
[४] तिमिर विनाशक गुरुजी, भविजन मन प्यारा; एक अरिहन्त शरण की, (२) आभ्यन्तर धारा ।
॥ॐ जय गुरुदेवा ॥
रमता समता रंग में, रंजित नर-नारी; गाते मस्त मगन हो, (२) जिन गुरण बलिहारी ।
. ॥ॐ जय गुरुदेवा ॥
अलख अलौकिक, प्रतिभा के धारी; नित प्रति ध्यान में रहते, (२) जिनवर जयकारी। .
॥ ॐ जय गुरुदेवा ॥
लाभानन्द गवाही, मेड़ता सुखकारी; सुन्दर अनुपम मूत्ति, (२) वन्दो भवहारी।
॥ ॐ जय गुरुदेवा ॥
प्रानन्दघन की प्रारती, जो कोई नित गावे; सूरि दक्ष-सुशील को, (२) जिनोत्तम ध्यावे ।
॥ ॐ जय गुरुदेवा ।। CCSSZZZZZZZZ