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________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-२४२ राग-दोस जग बंध करत हैं, इन को नास करेंगे। मरचो अनन्त काल तें प्राणी, सो हम काज हरेंगे ॥ . अब० ।। २ ।। देह विनाशी मैं अविनाशी, अपनी गति पकरेंगे। नासी जासी हम थिरवासी, चोखे ह निखरेंगे ।। अब० ।। ३ ।। मरयो अनन्त बार बिन समझे, अब सुख दुःख बिसरेंगे। आनन्दघन निपट निकट अक्षर दो, नहीं समरे सो मरेंगे ।। अब० ।। ४ ।। टिप्पणी--यह पद थानतरायजी का है। 'द्यानत-विलास' में पद संख्या ८८ पर है। इसे संग्रहकर्ता ने भूल से प्रानन्दघन जी के पदों में सम्मिलित कर लिया है। अर्थ-- श्रीमद् आनन्दघन जी क्षयोपशम भाव से कहते हैं कि अब मैंने अपनी आत्मा का स्वरूप पहचान लिया है कि मेरा आत्मा अमर है । आत्मा की मृत्यु नहीं है। पैंतालीस आगम, चणि, भाष्य, नियुक्ति, टीका और परम्परा तथा ज्ञान के द्वारा देखने पर प्रतीत हुआ कि प्रात्मा तो द्रव्य रूप से नित्य है । जन्म एवं मृत्यु के हेतु मिथ्यात्व, अविरति, कषाय एवं योग हैं। उनमें से मिथ्यात्व बुद्धि के हेतुओं का मैंने परित्याग कर दिया है । मिथ्यात्व जाने के पश्चात् मृत्यु के अन्य हेतु भी अल्प काल में नष्ट हो जाते हैं। अतः हम अब अमर हो गये हैं ।।१।। अर्थ-श्रीमद् आनन्दघन जी महाराज कहते हैं कि राग एवं द्वेष ये दोनों जगत् में बन्धन हैं। अतः हम इनका नाश करेंगे। अभी तक मेरे भीतर से राग-द्वेष गये नहीं हैं, परन्तु अब मैं समता के द्वारा राग-द्वेष का नाश करूंगा। आज तक मैं राग-द्वेष से हैरान हुआ, पर अब तो मैं राग और द्वेष का नाश करूंगा। राग एवं द्वेष के कारण अनन्त काल से प्राणी मरता रहा परन्तु अब तो हम काल का हरण करेंगे। राग, द्वेष एवं अज्ञान से आत्मा पर-वस्तु में आत्मत्व के भ्रम में कषायों के वश में हो जाता है और जिससे कर्म के योग से देह धारण करता है और चौरासी
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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