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योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-२१६
जिससे आपने मुझे अपनी सहचरी बनाया। ममता की संगति छोड़कर आज आपने मुझे स्वीकार कर लिया है। इससे अधिक मेरा सौभाग्य और क्या होगा ? ॥१॥
विवेचन -चेतना कहती है कि हे प्राणनाथ ! आपने मेरी सुधि ली और मुझे अपनी सहचरी बनाया, यह आपने अत्यन्त ही उत्तम कार्य किया है। आप यदि मेरी राय से चलेंगे तो क्रोध आप पर आधिपत्य नहीं जमा सकेगा। समता के प्रताप से क्रोध दूर रहता है। समता की संगति करने से कुमति का जोर नहीं चलता और ममता भी अपनी प्रबलता नहीं बना सकती। आपने यह अत्युत्तम कार्य किया है। समता की संगति से आप परम शान्ति का अनुभव कर सकेंगे।
अर्थ-सौभाग्यवती चेतना ने प्रेम एवं श्रद्धा के रंग में रंगी हई रुचिकर रंग वाली बारीक साड़ी पहन ली अर्थात् पति के सद्गुणों में एकरस हो गई। भक्ति रूपी मेहंदी लगाई और भाव रूपी सुखद अञ्जन लगाया ॥२॥
विवेचन--चेतना ने प्रेम-प्रतीति रूपी बारीक साड़ी पहन ली है। आपके सद्गुणों का प्रेम ही उसकी साड़ी है। चेतना आपके प्रेम में तन्मय हो गई है। चेतना आपके शुद्ध स्वरूप में ऐसी तन्मय हो गई है कि उसे बाह्य वस्तुओं का तनिक भी भान नहीं रहा। सती नारी इस प्रकार सद्गुणों के द्वारा अपने पति का मन प्रसन्न करती है। चेतना जानती है कि भक्ति के रंग में अद्भुत शक्ति है, अतः उसने वही रंग धारण किया है। बाह्य रंगों से अज्ञानी को आकर्षित किया जा सकता है, परन्तु ज्ञानी के मन को अन्तरंग भक्ति के बिना आकर्षित नहीं किया जा सकता। चेतना के नेत्रों में भाव अञ्जन डाला है। इस कारण से उस पर प्रात्मपति का भाव सहज ही प्रकट हुआ है।
अर्थ –चेतना ने सहज स्वभाव रूप (ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि) चड़ियाँ और स्थिरता रूप मूल्यवान कंगन हाथों में पहने तथा ध्यान रूप उरवशी माला प्रियतम के गुणों से पिरोई हुई गले में धारण की ।। ३ ।।
विवेचन-दोनों हाथों में सहज स्वभाव रूप चड़ियाँ पहनी। चड़ियाँ स्मरण कराती हैं कि किसी भी परिस्थिति में राग एवं द्वेष रूप विभाव पक्ष में नहीं पड़ना चाहिए। जो स्त्री अपने सहज भाव में नहीं