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श्री आनन्दघन पदावली-१८३
विवेचन-यदि श्रद्धा एवं समता को प्राप्त कर लिया जाये तो शिव रूप घर में आत्मा का आगमन अवश्य होगा। इन दोनों में अनन्तगुणी शक्ति है। ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र में श्रद्धा एवं समता का समावेश होता है। ये तीनों शक्तियाँ सम्मिलित हो जायें तो अन्तरात्मा परमात्मा बन जाती है। समस्त धर्म-कार्यों का मूल श्रद्धा है। सर्वप्रथम श्रद्धा प्राप्त करनी चाहिए। जहाँ श्रद्धा होती है वहाँ समता भी आ जाती है और दोनों की शक्ति सम्मिलित हो जाने से वे आत्मा को अपने घर में खींच लाती हैं।
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(राग-जैजैवन्ती) ऐसी कैसी घर बसी, जिनस अनैसी री। याही घर रहसी वाहो प्रापद हैसी री ।। ऐसी० ।। १ ।। परम सरम देसी. घर मेउ पंसी री। याही ते मोहिनी मैसी, जगत संगैसो री ।। ऐसी० ।। २ ॥ कौरी की गरज नैसी, गुरंजन चक्षसी री। प्रानन्दघन सुनौसी, बंदी अरज कहैसी री ।। ऐसी० ॥ ३ ।।
अर्थ --सुमति कहती है कि यह ऐसी अमंगलकारी माया किस प्रकार ज्ञानस्वरूप चेतन के घर में बस गई है ? यह जिसके घर में निवास करती है वहाँ यह अनेक प्रकार के संकट एवं विपत्तियाँ उत्पन्न करती हैं ॥१॥
- विवेचन-ऐसी कोई अन्य प्रकार की वस्तु घर में आ गई है कि जिसे समझने में भी कठिनाई होती है।
अर्थ-घर में प्रविष्ट होकर यह अत्यन्त लज्जा का कारण बनती है। मादा भेड़ के समान यह मोहिनी माया संसार से सम्बन्ध रखने वाली है ।। २ ॥
विवेचन-इस वस्तु की ऐसी भारी मोहिनी है कि जिससे जगत् के साथ सम्बन्ध होता है।