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__ ऐतिहासिक नगर मेड़ता में
श्री शान्तिनाथ जिनमन्दिर व योगिराज श्री प्रानन्दघनजी स्मृति मन्दिर
प्राचीन संस्कृति का प्रतीक मेड़ता नगर मरुधरा का ही नहीं, अपितु भारत के समुन्नत नगरों में से एक रहा है। सभ्यता-संस्कृति-कलाशौर्य-भक्ति व वीरता के क्षेत्र में अतीतकाल से ही यह अग्रगण्य रहा है।
...राजस्थान राज्य की पवित्र भूमि में श्री फलवद्धि पार्श्वनाथ जैन तीर्थ के निकटवर्ती श्री मेड़ता पुरातन नगर है। इस शहर को करीबन दो हजार वर्ष पहले पवार राजा मानधाता ने बसाया था, इसका नाम मानधातृपुर कहलाता था, संस्कृत-लेखादि में इसका नाम मेडन्तक भी मिलता है, जिसका अपभ्रश मेड़ता है। जैन साहित्य में इसका नाम मेदिनीपुर-मेदनीपुर भी मिलता है ।. 'हिन्दुस्तान-निवासियों का संक्षिप्त इतिहास' पुस्तक से ज्ञात होता है कि नागभट्ट प्रथम (७२५-४० ई.) ने मेड़ता को अपनी राजधानी बनाया था, इसके बाद का एवं पूर्व का इतिहास अनुपलब्ध है। वि. सं. १५१८ में जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के कुंवर वीरसिंहजी व दूदाजी ने कोट की नींव रखकर इस शहर को पुनः बसाया था। यहाँ कई योद्धा शासक हुए हैं। इन शासकों में वीरवर जयमलजी का नाम इतिहास के पृष्ठों को गौरवमयी गाथाओं से सुवासित कर रहा है। यहाँ के प्रसिद्ध स्थलों में श्री चारभुजानाथ एवं श्री मीराबाई का मन्दिर, जामा मस्जिद मालाकोट आदि स्थल ऐतिहासिक व दर्शनीय हैं।
इस शहर में वर्तमान में १४ प्राचीन जैन मन्दिर हैं। उनकी प्रतिमानों पर वि. सं. १४५० से १८८३ (ई. सन् १३६३ से १८२६) तक के लेख हैं । “परगने मेड़ता की बस्ती" जिसे मुहणोत नैणसी ने सं. १७२० में लिखा है, उसमें मेड़ता के प्रोसवालों की संख्या १३७१ लिखी