SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । १२ ) उनका अभिवादन करने के लिए शब्दकोश में · शब्द भी उपलब्ध नहीं हैं। अन्त में, यही कहा जा सकता है कि श्रीमद् आनन्दघनजी स्वयं इतने समर्थ आध्यात्मिक विद्वान् थे, फिर भी उन्होंने अपने पदों तथा स्तवनों में संक्षेप में दान, दया, तप एवं मानव-सेवा आदि में तन्मय होने के लिए मार्गदर्शन किया है। इतने समर्थ विद्धान होते हुए भी उनके पदों में यत्र-तत्र उनकी अनुपम नम्रता दृष्टिगोचर होती है। योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी के सभी पद गेय हैं और विभिन्न राग-रागिनियों में हैं, जिन्हें गाकर जैन-अजैन सभी तन्मय हो जाते हैं । उन्होंने सुन्दर रचनाओं के द्वारा वीतराग परमात्मा की स्तुति की है, स्तवना की है, ऐसे परम संवेगी, वैरागी, नि:स्पृह, ध्यान-लीन श्रीमद् . आनन्दघनजी के पद अध्यात्म साहित्य की अमूल्य थाती हैं। . मैंने अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार विद्वान् , लेखकों के अर्थ-भावार्थ का अवलोकन करके अपनी ओर से अर्थ-भावार्थ लिखे हैं, उनमें कोई त्रुटि रह गई हो तो पाठक सूचित करें ताकि द्वितीय प्रावृत्ति में उन त्रुटियों को सुधारा जा सके। अर्थ-भावार्थ के आधार पर पदों, स्तवनों एवं अन्य रचनाओं का उचित विवेचन भी मैंने चिन्तन-मनन करने के पश्चात् लिखा है। आशा है, पाठक उससे लाभान्वित होंगे और रचनाओं को समझने में उन्हें उससे सहायता मिलेगी।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy