________________
( ११ ) श्रीमद् आनन्दघनजी अनुभवों के भण्डार थे। 'मेरे घट ज्ञान-भानु भयो भोर' आदि पदों के द्वारा उन्होंने जैनों की स्वभाव-रमणता प्राप्त की है और आत्म-परिणति के रूप में उनमें ज्ञान-क्रिया का परिणमन हुआ था।
- योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी के पदों में चारों अनुयोग स्पष्ट किये गये हैं। यह उनके ज्ञान को विशालता है। श्रीमद् आनन्दघनजी की समन्वय शैली भी आध्यात्मिक प्रगति का अमोघ साधन है। उनका एक-एक पद अमृत-बिन्दु तुल्य शीतल एवं मधुर है तथा आत्म-जागृति के पुरुषार्थ से परिपूर्ण है। उनके पदों की एक-एक पंक्ति जगमगाते वैराग्य के तेजस्वी दीपकों का स्मरण कराती है। उनके पदों की प्रत्येक पंक्ति आत्मिक दीपावली के लिए दीपमालाओं का स्मरण कराती है और उनके पदों के अक्षर आत्म-जागृति हेतु रत्न-मंजूषा तुल्य हैं। उनके पदों की अमुक पंक्तियों से ज्ञात होता है कि उन्हें योग का गहन अभ्यास था।
. श्रीमद् आनन्दघनजी ने अनेक नयों से परिपूर्ण पदों में आत्म-सिद्धि एवं आनन्द का समूह प्रकट करने के लिए आत्मा की अनेक गूढ़ शक्तियों का वर्णन किया है, जिससे ज्ञात होता है कि उन्हें आगमों का अगाध ज्ञान था। ये आगमों तथा अध्यात्म के सतत अध्ययन में रत थे और एक योगी का जीवन उन्होंने जिया। उन्होंने आत्म स्वरूप के चिन्तन एवं अनुभव में एकान्त निर्जन गुफाओं में अथवा सुदूर पर्वतों पर अध्यात्म एवं योग की साधना में अनेक वर्ष व्यतीत किये।
- योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी अर्थात् दिव्य विभूति के दर्शन, श्रीमद् आनन्दघनजी अर्थात् अध्यात्मयोगी की साधना, श्रीमद् आनन्दघनजी अर्थात् अध्यात्म दृष्टि का तेजपुंज, श्रीमद् आनन्दघनजी अर्थात् सुमति, कुमति, विवेक, ममता, समता, निश्चय, व्यवहार, तृष्णा, नटनागर, लालन, चेतन आदि अनेक पात्रों का एकीकरण और उनके पद अर्थात् अध्यात्मयोगी का तेजोमय दर्शन तथा उनकी मंगलमय वाणी अर्थात् अध्यात्म-द्रष्टा का पैगाम । उनका ज्ञान इतना अगाध था कि