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________________ श्री आनन्दघन पदावली-१३६ तिसना रांड भांड की जाई, कहा घर करे सवारी ।। सठ ठग कपट कुटंबहि पोषत, मन में क्यू न विचारौ।। __अनुभौ० ।। २ ।। कुलटा कुटिल कुबुधि संग खेलिके, अपनी पत क्यू हारौ।। प्रानन्दघन समता घर आवे, बाजे जीत नगारौ ।। अनुभौ० ।। ३ ।। अर्थ - हे अनुभव ! तुम तो हम दोनों के, मेरे एवं चेतन के, हितैषी हो। तुम मेरे स्वामी चेतन के पास जाकर ऐसी चतुराई करो जिससे वह माया, ममता आदि औरों का संग न करे ।। १ ।। विवेचन -सुमति कहती है कि तुम कुछ भी उपाय करो; चेतन को माया, ममता कुमति आदि अन्य स्त्रियों का संग छोड़ने के लिए विवश करो। हे अनुभव ! तुम ऐसा उपाय करो जिससे चेतन को माया ममता आदि कुलटा स्त्रियों के प्रति प्रेम न रहे। उन कुलटाओं ने उसका धन लट लिया, उसे दु:ख दिया। ये सब बातें उसे समझाओ और मेरे स्वामी चेतन को उनके पाश से छुड़ाओं। अनुभव में अलौकिक सामर्थ्य जान कर सुमति उसे निवेदन करती है। सुमति एवं प्रात्मा का प्रत्यक्ष सम्बन्ध कराने वाला अनुभव है। अनुभव ज्ञान केवलज्ञान का लघु भ्राता है। किसी भी तत्त्व का अनुभव हुए बिना रस उत्पन्न नहीं होता। समता उत्पन्न होने पर अनुभव ज्ञान प्रकट होता है। अतः अनुभव ज्ञान प्राप्त करना हो तो समता को प्रकट करना होगा ताकि अनुभव का मिलाप हो सके। - यह तृष्णा रांड तो भांड की पुत्री है जो नकल बना कर मनुष्यों को रिझाती रहती है। इसने किसके घर को सजाया है, किसके घर में प्रकाश फैलाया है ? यह तो दुष्ट है, ठग है, कपटी है और अपने परिवार जनों का ही पोषण करती है। तुम मन में यह क्यों नहीं सोचते ? ॥२॥ विवेचन-तृष्णा मोह रूप भांड की पुत्री है। तृष्णा के कारण मेरा प्रात्म-पति एक स्थान पर नहीं बैठता। सुमति कहती है कि तृष्णा के कारण मेरे आत्म-स्वामी ने अनेक पदार्थ खाये, पिये, फिर भी उसे सन्तोष नहीं हुआ। आत्मा को दु:ख के गर्त में धकेलने वाली तृष्णा मेरे स्वामी के घर में क्या उजाला करने वाली है ? यह तृष्णा शठ है,
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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