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श्री आनन्दघन पदावली-१३१
विवेचन-अनादि काल से राग एवं द्वेष के पासे को आत्मा ने स्वयं हितकर जानकर बनाया है और पासे के दाव के अनुसार कर्मखिलाड़ी अपनी गोट चलाता है। परवस्तु में इष्टता की बुद्धि को राग कहते हैं और परवस्तु पर होने वाले अनिष्ट परिणाम को द्वेष कहते हैं । राग-द्वेष का नाश करने के लिए प्रात्म-तत्त्वज्ञान की आवश्यकता है। राग-द्वेष के द्वारा यह संसार-बाजी निरन्तर चलती रहती है। चौरासी लाख जीव योनि में परिभ्रमण कराने वाले राग और द्वेष हैं। अतः यदि संसार रूपी बाजी जीतनी हो तो राग-द्वेष को जीतना होगा।
चौपड़ के पासों में पाँच के चिह्न के नीचे दो का चिह्न और छह के चिह्न के नीचे एक का चिह्न होता है। पाँच.और दो सात होते हैं और छह और एक मिलकर भी सात होते हैं। पाँच का अर्थ है पंचास्रव और दो का अर्थ है-राग एवं द्वेष को प्रवृत्ति; छह का अर्थ है षट्काय और एक का अर्थ है असंयम प्रवृत्ति । इन पासों की चालों में विवेक नहीं रखा गया, पंचास्रवों में और राग-द्वेष की प्रवृत्ति में तथा षट्काय की हिंसा एवं असंयम में लगे रहे तो चार गति वालो जोवन चौपड़ में पिटते रहे, मरते रहे, फिर बैठते रहे, जन्म लेते रहे तो बाजी हार जानोगे। यदि विवेक जाग्रत रख कर पंचास्रव, राग-द्वेष पर अंकुश रखकर, षट्काय की हिंसा तथा असंयम से निवृत्त होकर जीवन गोटी चलाई तो निश्चित रूप से खेल मैं विजय होगी अर्थात् भव-भ्रमणं नष्ट होकर लक्ष्य की प्राप्ति हो जायेगी ।। ३ ।।
विवेचन--पूज्य श्री बुद्धिसागर सूरीश्वरजी के मतानुसार पाँच के नीचे दो है और छह के नीचे एक है। इन सबका योग चौदह होता है । पाँच का अर्थ पाँच इन्द्रियाँ लें। उन पर विजय प्राप्त करने वाला राग-द्वेष रूप दो पर भी विजयी होता है तथा छह लेश्याओं को भी जीत लेता है। छह लेश्याओं पर विजयी होने पर मन भी स्वतः ही जीत लिया जाता है। दूसरे प्रकार से प्रात्मा, अनन्तानुबंधी कषाय तथा अप्रत्याख्यान कषाय - इन दो प्रकार के कषायों को जीतकर पाँचवें गुणस्थानक को प्राप्त करता है। इसमें दो गुणस्थानक जोड़ दिये जायें तो सातवें अप्रमत्त गुणस्थानक को प्राप्त करता है। वहाँ से आगे प्रयत्न करे तो ऊपर के छह गुणस्थानकों को लाँघ कर तेरहवें सयोगी केवली गुरणस्थानक में केवलज्ञान एवं केवलदर्शन को प्राप्त करता है। वहाँ से केवल चौदहवाँ स्थानक हो शेष रहता है, जिसे प्राप्त करके परमात्मा सिद्ध-बुद्ध बनता है। . इस प्रकार गिनती करने का विवेक अन्तर में उतारना चाहिए।